क्या करेगा कोई बुरा मेरा
ग़ज़ल
क्या करेगा कोई बुरा मेरा।
जब निग़हबां है ये ख़ुदा मेरा।।
मुझको बैशाखियां थमा कर वो।
छीन लेता है हौसला मेरा।।
आज हैं चंद हमसफ़र मेरे।
कल तो होगा भी क़ाफ़िला मेरा।।
अपने गेसू सँवार लेता फिर।
तोड़ देता है आईना मेरा।।
मैं हूँ खानाबदोश तो तुझको।
अब बताऊँ भी क्या पता मेरा।।
अब सज़ा दे या बख़्श दे मुझको।
हाथ उसके ही फैसला मेरा।।
आदमी मैं “अनीस” सीधा हूँ
और सीधा है रास्ता मेरा ।।
– अनीस शाह “अनीस”