कौन है वो
मेरे सामने खड़ी कौन है वो
कब से खड़ी है, मौन है वो
कहीं वो मेरी परछाई तो नहीं
कहीं मेरी वो बेवफाई तो नहीं
खो दिया था जिसे अंजाने में
जिंदा आज भी है अफसाने म़े
चली गई थी अकेला छोड़कर
मिली जीवन के ऐसे मोड़पर
दर्शन होते हैं सुंदर तस्वीर के
जहाँ रास्ते बंद होते तकदीर के
चाहकर भी एक नहीं हो सकते
सुख दुख साँझा नहीं कर सकते
प्रेम बंधन नहीं स्वतंत्र भाव है
प्रेमरंग में.ही जीने का चाव है
होते हैं वो सभी नसीब वाले
प्रेम जिन्ह़े मिला,हैं कर्मों वाले
सुखविंद्र सिंह मनसीरत