कौन हूँ मैं ?
कौन हूँ मैं ?
मैं कौन हूँ ? ये है एक सवाल।
आज तक स्वयं को ढ़ूंढ़ती रही,
इस उलझन को सुलझाती रही,
कहते हैं आईना सच बोलता है,
खुद को पहचानने की कोशिश करती रही आईने में,
मगर बाहरी आवरण ही दिखाई दी मुझे आईने में,
मेरे अंतर्मन की कोई झलक नहीं दिखाई दी आईने में,
मेरे दिल की कोई भी पीर नहीं दिखाई दी आईने में,
मेरे दिल के कोई भी भाव नहीं दिखाई दी आईने में,
मैंने जो देखना चाहा बस वही दिखाई दी आईने में,
मैं नहीं मानती आईना सच बोलता है ।
फिर मैं अपने आपको को कैसे देखूँ ?
ये है उलझन !
शायद जवाब दे मेरा अंतर्मन,
हाँ हाँ मेरा अंतर्मन,
यही मेरी पहचान मझसे करवाता है,
मेरा आईना बनकर मुझे मुझसे मिलवाता है,
मुझे दिलासा देकर हौसला बढ़ाता है,
जिंदगी इसी का नाम है कहकर आश्वासन देता है,
विरक्त भाव को दबा कर जिम्मेदारी का बोध कराता है,
और मैं सुख-दुःख समेटे जीवन पथ पर कदम उठाती जाती हूँ,
जीवनधारा में बहती जाती हूँ,
फिर भी मैं की तलाश पूरी नहीं होती,
उलझन बना ही रहता है
और सवाल उलझा ही रह जाता है |
कौन हूँ मैं ?
पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान