कौन सोचता है
कौन सोचता है आजकल,किसपे क्या गुजरी।
रात महफ़िल में कटी ,यां कहीं तन्हा गुजरी।
कोई नहीं जो देखे,तेरे ज़ख्म जो है नुमाया।
कितनों ने डाला नमक,किसने मरहम लगाया।
वक्त की रफ्तार से , तेज़ रफ़्तार है ज़माने की।
कोई नहीं बावफा,क्या जरूरत आजमाने की।
किसके लिये तू रोये,कौन देखें नम आंखें तेरी
इश्क़ में जो थे डूबे,न पूछें वो खैरीयत तेरी।
तन्हाई ही सच है ,तन्हा ही हमें अब है रहना
मानों या न मानों,यही सच था मुझे कहना।
सुरिंदर कौर