कौन सा मैं चुप रह गया?
जिसको जब जो ठीक लगा,
वो कह गया जो कह सका,
दूध का धुला तो मैं भी नहीं,
कि कहां मैं सब कुछ सह सका,
भावनाओं में या आवेश में मैं,
जाने कैसे बह गया,
कोई बात मैं दिल पे लगाऊं कैसे,
कि कौन सा मैं चुप रह गया,
छोटी-छोटी कुछ बातों में कभी,
खो बैठता अपना आत्म मैं
क्या फायदा है इस बात का कि,
अक्सर पढ़ता हूँ अध्यात्म मैं,
और किसी को कैसे यहां,
दे सकता हूं कोई दोष मैं,
मेरी सोच तो कोरा दिखावा है अगर,
थाम सकता ना अपना रोष मैं,
ना दिल दुखे अब किसी का“अंबर”,
ना रिश्तों की डोरी टूटने पाए,
दूरी तो ज़रूरी हर रिश्ते में है,
बस साथ किसी का ना छूटने पाए।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।