#कौन कहे अनजाना हूँ //सौ रुबाइयाँ
# कौन कहे अनजाना हूँ//रुबाइयाँ
1.
प्रेम लिए मस्ती में जीता , एक नया दीवाना हूँ।
ग़म को ठोकर मार भगाऊँ , ताक़त का नज़राना हूँ।
दूर चला जाऊँगा फिर भी , याद तुझे मैं आऊँगा;
दिल में बसता हूँ मैं दिल से , कौन कहे अनजाना हूँ।
2.
जो ख़्वाब सजाए आँखों में , हासिल करके माना हूँ।
कथनी करनी एक रखूँगा , बस इतना ही जाना हूँ।
पीर नहीं हूँ मैं निर्बल की , गिरते सदा उठाये हैं;
एक नज़र से देखा सबको , कौन कहे अनजाना हूँ।
3.
फूल खिलाऊँगा पत्थर में , आशाओं का आना हूँ।
मौसम संग बदल जाऊँगा , ऐसा नहीं बहाना हूँ।
संकट हिम्मत से हारा है , भाव यही बस प्यारा है;
प्यारा सबको प्यारा लगता , कौन कहे अनजाना हूँ।
4.
खुद को खुद से जीता पहले , चलने की फिर ठाना हूँ।
आँसू आहें कमजोरी हैं , मैं ताक़त- दीवाना हूँ।
लिया नहीं है दिया सही है , सीख भरे काम वही है;
आँसू पोछूँ औरों के तो , कौन कहे अनजाना हूँ।
5.
जोश भरे पथ के हारों में , मैं वो मधुर तराना हूँ।
जहाँ पहुँच कर आराम मिले , मैं वो ठौर ठिकाना हूँ।
प्यासों के अधरों का जल हूँ , उम्मीदों का मैं कल हूँ;
राह दिखाऊँ भटको को मैं , कौन कहे अनजाना हूँ।
6.
न्याय दिलाता हूँ शोषित को , नादानों पर दाना हूँ।
पाकर जिसको ख़ुशियाँ बरसे , मैं वो नेक खज़ाना हूँ।
पीकर जिसको मस्ती आए , जो पाये झूमे गाए;
मैं मौज़ों का मानो प्याला , कौन कहे अनजाना हूँ।
7.
लीक नयी है चाल नयी है , मैं जाना पहचाना हूँ।
झर-झर बरसे ना शोर करे , सावन मेघ सुहाना हूँ।
मिट्टी को सौंधी मैं करता , हरियाली उर में भरता;
प्रेम धरा को देकर जाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
8.
शासन सत्ता का लोभ नहींं , हाँ!संतोष घराना हूँ।
तरुवर-सी हस्ती है मेरी , सीखा प्यार लुटाना हूँ।
गाँव शहर की देख उदासी , करने आया हूँ दासी;
आज़ादी मैं देने आया , कौन कहे अनजाना हूँ।
9.
होठों पर बस मुस्क़ान रहे , रस का मैं मयखाना हूँ।
सागर जैसा गहरा दिल है , सीखा भेद भुलाना हूँ।
चाँद लिए हूँ मन में अपने , शीतलता बरसाता हूँ;
नेकी कर सबको हर्षाता , कौन कहे अनजाना हूँ।
10.
रिश्ते नाते दिल से दिल के , सत्य यही मैं जाना हूँ।
जितना जग में प्यार लुटाऊँ , उतना खुद को माना हूँ।
ख़ुशबू देकर हँसता हूँ मैं , फूलों-सा खिलता हूँ मैं;
काँटों को भी अपना कहता , कौन कहे अनजाना हूँ।
11.
एक किराए का घर जग है , इतना अब तक जाना हूँ।
जितना प्यार लुटाऊँ इसमें , उतना लेकर जाना हूँ।
भौतिकता से भाग रहा हूँ , नैतिकता में जाग रहा;
सबको ऐसा पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
12.
लूट रहे दोनों हाथों से , उनको भटका माना हूँ।
इक दिन खुद ही लुट जाएंगे , चाहूँ ये समझाना हूँ।
दर्द दिया है जिसने जितना , उतना वो भी पाएगा;
अपना समझूँ याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
13.
सुख-दुख दोनों मन की बातें , ऊपर इनसे जाना हूँ।
जो मिलता है उसमें ख़ुश हूँ , मैं रब का दीवाना हूँ।
चाहत की दौलत है प्यारी , नफ़रत जिससे है हारी;
मोहब्बत के दीप जलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
14.
गुलशन-गुलशन फूल खिले हैं , भँवरा मन को माना हूँ।
प्रेम लिए रस को पीता है , मैं रस का दीवाना हूँ।
रस बिन जग है सूना-सूना , मानो तुम मौत नमूना;
मैं रस की ही बातें करता , कौन कहे अनजाना हूँ।
15.
दिल को जबसे पढ़ना सीखा , मैं इतना मस्ताना हूँ।
पल-पल को दिल से जीता हूँ , निखरूँ मैं रोजाना हूँ।
ये जीवन कितना प्यारा है , मानव फिर क्यों हारा है?
हारों को मैं राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
16
मीठा बोलूँ ऊँचा सोचूँ , समझूँ प्रीत निभाना हूँ।
बुरी बात पर ध्यान नहीं है , अच्छी का दीवाना हूँ।
संगत अच्छी रंगत अच्छी , यूँ दिन रात सुहाने हैं;
आदर्श बनूँ मैं सबका तो , कौन कहे अनजाना हूँ।
17.
इज़्ज़त सबको देना सीखा , सीखा प्रेम तराना हूँ।
व्यवहार ख़रा रखता अपना , ज़रा नहीं ललचाना हूँ।
यार गले के हार बनेंगे , दिल रोशन प्यार करेंगे;
प्यार सभी को मैं सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
18.
आँसू आहों का मोल करे , पापी उसको जाना हूँ।
भार धरा पर कहता उसको , देता दिल से ताना हूँ।
मज़बूरी को सूली करता , ख़ुद को करता मामूली;
ऐसो को मैं चोर बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
19.
माँ की ममता स्नेह पिता का , भूला कभी भुलाना हूँ।
आशीष बड़ों का सफल करे , चाहूँ पलपल पाना हूँ।
अपने-अपने ही होते हैं , सपने-सपने होते हैं;
अपनों को सपना ना समझूँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
20.
सबमें खुद को रख के देखूँ , समझूँ भेद हटाना हूँ।
सबसे पहले मानव हूँ मैं , मानवता दीवाना हूँ।
मंदिर मस्ज़िद गिरजा चाहे , देखे हों गुरुद्वारे भी;
संदेश सभी का एक वही , कौन कहे अनजाना हूँ।
21.
धर्म बड़ा ना जाति बड़ी है , कर्मों से पहचाना हूँ।
मूल अंश का समझाए जो , मानूँ उसको गाना हूँ।
अभिमानी झुकता आया है , प्रेमी पल-पल झूमा है;
प्रेमी का ही संग करूँ मैं , कौन कहे अनजाना हूँ।
22.
जीवन हीरे तुल्य मिला है , समझूँ तो मैं दाना हूँ।
ना समझूँ तो नादान बनूँ , अंत समय पछताना हूँ।
पूजा करता जीवन की मैं , हरपल में ख़ुशहाल रहूँ;
सब पर सुख की छाया करता , कौन कहे अनजाना हूँ।
23.
मालिक ने इंसान बनाया , नेक सभी को जाना हूँ।
भेद करे शैतान बने वो , इतना ही पहचाना हूँ।
प्रकृति सभी को देती आई , कब किससे कुछ चाहा है;
याद सभी को ये करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
24.
काम करो तुम मान करो तुम , चाहूँ ये समझाना हूँ।
छलिया को मिलता चैन नहीं , चाहूँ ये सिखलाना हूँ।
माया सुख का नाश करेगी , भ्रमित बुद्धि रोज फिरेगी;
जीवन इससे मुक़्त कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
25.
आनंद छिपा है कविता में , अमर इसी को माना हूँ।
जितनी बार पढ़ा है इसको , कम कब इसको जाना हूँ।
अक्षय पात्र कहूँ रस का मैं , सदियाँ पीती जाएँगी;
सबको इसका राज बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
26.
सच्चे भावों से बनती है , मैं कविता दीवाना हूँ।
जिसने इसका पान किया है , उसको ख़ुश ही जाना हूँ।
आनंद भरा है कविता ने , सच्ची राह दिखाई है;
सबको इसकी लत करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
27.
भौतिक चीजें मिट जाती हैं , मैं भी ये सच माना हूँ।
काव्य अमर है सबको कहता , गाता यही तराना हूँ।
प्रिय की यादें सुख देती हैं , जीवन भर ये रहती हैं;
कविता प्रियसी यही सुझाता , कौन कहे अनजाना हूँ।
28.
सुख हों चाहे दुख हों मन में , कविता लिखना जाना हूँ।
लिख भावों को खुश होता मैं , सौभाग्य इसे माना हूँ।
देख तन्हाई हार गई है , मेरे इस सुख के आगे;
सुख की सबको राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
29.
ढंग नया है चाल नयी है , राहें मखमल माना हूँ।
हर मंज़र हितकारी लगता , जबसे कविता जाना हूँ।
तितली बनके उड़े कल्पना , नयनों में उद्यान रहे;
सबको उड़ना यार सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
30.
स्वप्न सजाकर इंद्रधनुष-से , नींद स्वर्ग की माना हूँ।
धूप लगे रेशम-सी मुझको , छाँव बसंती जाना हूँ।
नील झील में कमल सरीखा , कविता मुझे हँसाती है;
सबको कविता मीत बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
31.
निश्चित जीत लगे कायर भी , लड़ता जाए जाना हूँ।
हार लगे तब लड़ता उसको , असली योद्धा माना हूँ।
कमल सदा कीचड़ में खिलता , फिर भी हँसना सीखा है;
हँसने की मैं सोच जगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
32.
सौंदर्य निहारा जब मैंने , हर्षित मन को जाना हूँ।
हर्षित मन हो रोग लगे ना , उम्र बढ़े पहचाना हूँ।
उम्र बढ़े तो लंबे नाते , नातें होते हितकारी;
सबके हित की बात बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
33.
यार बनो जयकार करो तुम , यारी मैं भी जाना हूँ।
कृष्ण सुदामा-सी यारी हो , यारी उसको माना हूँ।
संकट में है साथ निभाना , ख़ुशियों संग मुस्क़राना;
यारी की में रीत बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
34.
भेदभाव में जीवन रोता , प्यार हँसाए जाना हूँ।
चारों और सुनूँ फिर रोना , मूर्ख मनुज को माना हूँ।
अपने दुख का कारण खुद है , मान रहा है ग़ैरों को;
सच्चाई की शक्ल दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
35.
प्रेम पंथ की धूम रही है , प्रेमी सिद्ध सुजाना हूँ।
मोर नृत्य-सा आनंद मिले , जब प्रेमी मन माना हूँ।
विष अमृत बने प्रेम संग से , मन में जोश उमंग रहे;
जोश सभी में भरना चाहूँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
36.
जग जीवन ये भार नहीं है , उपहार इसे माना हूँ।
चार वेद-से भाव भरे हैं , इंद्रधनुष-सा जाना हूँ।
फूलों-सी कोमलता इसमें , गंगा जल-सी शीतलता;
हर जीवन में रंग खिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
37.
आवाज़ बनूँ लाचारों की , इसको सेवा माना हूँ।
इन आँखों में मालिक बसता , देखा तो पहचाना हूँ।
लाख दुवाएँ देते मुझको , तन-मन यूँ ख़ुशहाल रह;
ख़ुशहाली का राज सुझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
38.
मन में द्वेष नहीं रखता हूँ , शत्रु इसे मैं जाना हूँ।
कोलाहल से दूरी रखता , सीखा अमन सजाना हूँ।
मन पर काबू हो जाए तो , जीत हमारी होती है;
सबकी यारों जीत कराऊँ , कौन कहे अनजाना।
39.
सूरत सीरत एक रखूँ मैं , अंतर धोखा माना हूँ।
धोखा देकर इक दिन सबकी , नज़रों से गिर जाना हूँ।
विश्वास मिटे फिर ना बनता , टूटा पल्लव कब जुड़ता;
बिन ठोकर की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
40.
अंदर की आवाज़ सुनूँ मैं , सत्य उसी को जाना हूँ।
पापी को भी शिक्षा देती , चाहूँ यही सिखाना हूँ।
सुनके भी जो गुने नहीं पर , उनकी ये नादानी है;
नादानों को सबक सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
41.
हार हुई वो स्वीकार हुई , फिर कोशिश की ठाना हूँ।
गिर-गिर के ही चलना सीखा , बचपन से पहचाना हूँ।
काम करे वो गलती करता , गलती मान सुधार करे;
हारे को मैं पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
42.
विश्वास रहे मन काम बने , चाहूँ धैर्य बढ़ाना हूँ।
धैर्य रहे सब जीता जाए , सीख बड़ी ये माना हूँ।
मंदिर में भगवान नहीं है , विश्वास छिपा जगता है;
मन अँधियारा दूर भगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
43.
सही गलत की समझ रखे जो , जागा उसको जाना हूँ।
गलत राह को सही बताए , भटका उसको माना हूँ।
माया पासा फैंका करती , गलत काम करवाती है;
माया से मैं मुक्ति दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
44.
साथी बनके जीना आया , तबसे जीना जाना हूँ।
जो अपनी ही खातिर जीता , यार कमीना माना हूँ।
नदियाँ सागर पर्वत तरुवर , सब देना ही जाने हैं;
सेवा के मैं गुण बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
45.
यार ग़रीबी माँजा करती , अभिशाप नहीं माना हूँ।
धूप छाँव सा जीवन अपना , सहकर इसको जाना हूँ।
प्यार परीक्षाओं से करके , नेक सफलता मिलती है;
धैर्य लग्न की सोच जगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
46.
प्रतिकूल समय अनुकूल करे , महापुरुष पहचाना हूँ।
करे बहाने पीछे हटता , कायर उसको माना हूँ।
कायर मरता है पल-पल में , बोझ धरा पर कहलाए;
आन बान की याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
47.
मरकर भी जीते हैं जग में , वीर उन्हें ही माना हूँ।
जी कर भी जो मरे हुए हैं , कायर उनको जाना हूँ।
बिन अर्थों का जीवन क्या है , जीवन वह पाठ पढ़ाए;
जीवन का मैं अर्थ सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
48.
फूट डाल कर जो लड़वाता , नीच उसे मैं माना हूँ।
प्यार जगाकर जो मिलवाए , मीत उसे मैं जाना हूँ।
दौलत पाना ही चैन नहीं , चैन मिले व्यवहारों में;
मानव का मैं धर्म बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
49.
आँखें सपने भूल गई जो , बेबस उनको माना हूँ।
मन में जिसके प्यार नहीं है , जड़-सा उसको जाना हूँ।
क़दम वही जो बिन थक चलते , मंज़िल पाकर दम लेते;
सूर्य-चंद्र की रीत सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
50.
शक्ति शील सुंदरता को मैं , मन का गहना माना हूँ।
जिसने भी पहन लिया इनको , सिद्ध पुरुष पहचाना हूँ।
दीप जला जीत हवाओं से , यश उसने ही पाया है;
यश की सबको राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
51.
निर्बल-रौंदे खुशी मनाए , नीच उसे मैं माना हूँ।
हाय लगेगी फिर रोयेगा , बार-बार समझाना हूँ।
बिन सीढ़ी चोटी चढ़ गिरना , दर्द बड़ा ही देता है;
सबको सीधी राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
52.
झरनों का मैं राग सुनाऊँ , नदियों का दीवाना हूँ।
सागर गहरा दिल रखता हूँ , दर्द सभी का जाना हूँ।
बादल बनके गिरूँ धरा पर , फ़सलों को हर्षाऊँ मैं;
सबके दिल की प्यास बुझाता , कौन कहे अनजाना हूँ।
53.
बेबस आँखों का सपना हूँ , लाचारी पहचाना हूँ।
अधिकारों की बात करूँ मैं , समता का पैमाना हूँ।
अँधों की आँखों का तारा , बहरों की आवाज़ बना;
सबको हक का पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
54.
आशीष बुज़ुर्गों का लेकर , फूला नहीं समाना हूँ।
पथ के काँटे फूल बनेंगें , स्नेह इसी को जाना हूँ।
सम्मान बुज़ुर्गों का करते , शोहरत उन्होंने पाई;
सबको इनका ध्यान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
55.
जीवन पल-पल बदला करता , मैं तू आना जाना हूँ।
वैभव पाकर गिरगिट बनता , कहूँ उसे पगलाना हूँ।
नींद खुले तो सपना टूटे , महल बनें वो गिर जाएँ;
सच का मैं दर्पण दिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
56.
लज्जा देकर लज्जा मिलती , चाहूँ ये समझाना हूँ।
प्रेम बटे तो घर-घर फैले , अमृत इसे मैं माना हूँ।
विष की फिर जो पूजा करता , मानव बड़ा अभागा है;
अपना समझूँ ज्ञान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
57.
युद्ध सदा घाटे का सौदा , चाहूँ प्रेम जगाना हूँ।
घट-घट में भगवान बसा है , चाहूँ घृणा भगाना हूँ।
एक नूर से संसार बना , फिर ये लड़ना भिड़ना क्यों?
सबका भ्रम मैं दूर भगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
58.
धरा-गगन मिल ख़ुशियाँ बाँटें , मात-पिता सम जाना हूँ।
मनुज कुकुर बन झपट रहा है , मूर्ख इसे मैं माना हूँ।
प्रेम-भरा बँटवारा होता , सब हँसते मनु ना रोता;
नफ़रत की मैं आग बुझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
59.
भाव हृदय के पवित्र रखता , मानवता दीवाना हूँ।
संवेदनशील रहूँ प्रतिपल , सात्विकता पहचाना हूँ।
देख मशीनी युग की चालें , आधार नहीं भूला हूँ;
संस्कारों का पथ बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
60.
तनिक विवाद हृदय छूता है , परिवर्तन की ठाना हूँ।
बंधुत्व रहे जग में हँसता , जीत इसे ही माना हूँ।
चोरी ज़ारी लूट शून्यता , हाँ! हार बलात्कारी है;
इनसे गर मैं मोह छुड़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
61.
भाव मरे हों जिस जीवन के , मौत उसे मैं माना हूँ।
रिश्ते-नाते पहचान करे , चेतन उसको जाना हूँ।
नर सेवा नारायण सेवा , नर में ही भगवान रहे;
मूल अंश का ज्ञान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
62.
दाता को भगवान कहूँ मैं , गाऊँ उसका गाना हूँ।
छीने उसको शैतान कहूँ , मूढ़ उसे मैं जाना हूँ।
माल मिलावट का बेचे जो , वो भी पापी कहलाए;
गलती का अहसास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
63.
लाज लूटता अबला की जो , लानत उसको माना हूँ।
दोजख़ में भी जगह नहीं है , चाहूँ उसे बताना हूँ।
माँ बहनों की इज़्ज़त करता , इंसान वही होता है;
इंसानों का धर्म बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
64.
जिसके मन में प्रेम भरा हो , राजा उसको माना हूँ।
विष फैलाता दौलत पाकर , रंक उसे मैं जाना हूँ।
यम की आँखें देख रही सब , दृश्य वही दिखलाएँगी;
समय रहे आभास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
65.
छिप-छिप के अपराध करे तू , चाहूँ तुझे बताना हूँ।
चलचित्र तुझे तड़फाएँगे , चाहूँ मैं समझाना हूँ।
मात-पिता पुत्र विहीन किए , दशरथ ने फल पाया था;
एक कथा संदेश सुनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
66.
जीवन है प्रिय का आलिंगन , मनहर इसको माना हूँ।
अदा-अदा की नवल कहानी , मैं हर का दीवाना हूँ।
प्यार भरा समय बना प्याला , मन- तृष्णा दूर भगाता;
जीवन रस का पान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
67.
प्रिय के अरुण कपोलों को मैं , मधु का प्याला माना हूँ।
यौवन की प्रीत अदाओं से , मादकता को जाना हूँ।
मस्ती नयनों में सावन की , होंठ कुसुम की हाला हैं;
प्रिय का सबको स्वप्न दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
68.
मीठी बातें चुंबक लगती , सुनने का दीवाना हूँ।
स्पर्श लगे है रेशम-रेशम , आलिंगन से जाना हूँ।
सुख वैभव का वो आलय है , जिसके आगे जग फीका;
मन से मन का मिलन कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
69.
सीता पाने को राम बनो , चाहूँ मैं बतलाना हूँ।
आदर मन से मन का करके , प्रेम रंग पहचाना हूँ।
संग-संग जब साहिल चलते , प्रेम नदी तब बहती है;
प्रेम मिलन का अर्थ सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
70.
शब्द-कुसुम हो माला बनते , कहता उसे तराना हूँ।
सुर लय की ख़ुशबू महकेगी , जिसका मैं दीवाना हूँ।
मिलन वही जो मन को भाए , जो देखे वो हर्षाए;
संतुलन सभी को सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
71.
भेदभाव तो विष उगलेगा , अजगर इसको माना हूँ।
जिसपर इसका असर नहीं है , चंदन उसको जाना हूँ।
चंदन-चंदन देखूँ जग में , चंदन के गुण गाऊँ मैं;
सबको चंदन याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
72.
प्रेम किया था मीरा ने भी , राधा को भी जाना हूँ।
संत कबीरा प्रेमी जाना , नानक प्रेमी माना हूँ।
रैदास हुआ सच्चा प्रेमी , गंगा दिखा कठौती में;
प्रेम जता कर अमृत पिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
73.
प्रेम डगर पर चलना सीखा , सत्य प्रेम को माना हूँ।
प्रेम बिना है जग सूना ये , चाहूँ प्रेम सिखाना हूँ।
प्रेम लिए आभास स्वर्ग का , प्रेम सदा मंगलदायी;
प्रेम लिए मैं प्रेम सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
74.
सूर्य-चंद्र भी प्रेमी जग के , प्रेम अटल मैं माना हूँ।
सही समय पर आना जाना , कभी नहीं झुठलाना हूँ।
सीख सभी इनसे ही लेना , निश्छल प्रेमी कहलाना;
प्रेम रंग सब पर बरसाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
75.
संग समय के जो चलता है , आदर उसका जाना हूँ।
कदर समय की जो ना करता , बुद्धिहीन मैं माना हूँ।
अनुशासन में जीनेवाला , सदा सफलता पाएगा;
सफल योग की बात सुनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
76.
सब कलियाँ खिल फूल बनेंगी , सत्य नहीं मैं माना हूँ।
चाही ख़ुशियाँ हमें मिलेंगी , अटल नहीं मैं जाना हूँ।
सही कर्म से जो मिल जाए , ख़ुशियाँ उसमें होती हैं;
ख़ुशियों का मैं संग कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
77.
जीवन होता एक कहानी , इतना समझा जाना हूँ।
सबके किरदार अलग होते , चाहूँ यही बताना हूँ।
जो किरदार मिला है तुमको , उसे बड़ा कर जाना है;
कलाकार मैं तुम्हें बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
78.
कर्म बिना है जीवन जड़-सा , गति को चेतन माना हूँ।
ठहरा जल भी सड़ जाता है , बहता निर्मल जाना हूँ।
चट्टानों को तोड़ा जल ने , झरना तब कहलाया है;
संघर्ष निखारे समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
79.
सुप्त-शक्तियों के राजा हो , रंक नहीं मैं माना हूँ।
क्यों बनते तुम लाचार मरे , जीत जोश की जाना हूँ।
सही दिशा की ओर बढ़ो तुम , क्षमता अपनी पहचानो;
मार्ग विजय का मैं बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
80.
ये संसार दुखों का घर है , मैं दुख का दीवाना हूँ।
दूर भगाऊँ फिर भी आए , सच्चा साथी माना हूँ।
सुख-दुख का जब अंतर भूला , फूला नहीं समाया मैं;
जीने का आनंद सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
81
अपमान नहीं सम्मान करूँ , सबको अपना माना हूँ।
ऊँच नीच का भाव मरा है , समता को पहचाना हूँ।
पशु पक्षी मानव सब प्यारे , सब में है नूर ख़ुदा का;
स्नेह-सुरा का पान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
82
मन को पत्थर करने वालो , शैतान तुम्हें माना हूँ।
प्रेमभाव की पूजा करता , गाता इसका गाना हूँ।
मानव आँसू देनेवाले , ख़ुद भी आँसू पाते हैं;
सुख के सागर में नहलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
83
मिट जाए जो देश-प्रेम में , नायक उसको माना हूँ।
गद्दारी का झूला झूले , चाहूँ उसे मिटाना हूँ।
पर नारी पर डोरे डाले , गिरा हुआ कहलाए वो;
मानवता की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
84
वादों पर जो अटल रहेगा , नेता उसको माना हूँ।
गिरगिट-सा बदला करता है , मानवता अरि जाना हूँ।
बहरुपियों को दूर भगाओ , देश तभी उठ पाएगा;
क़ीमत वोटों की समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
85
कब जागेगी जनता सोई , चाहूँ रोज जगाना हूँ।
स्वार्थ अभी तुम त्यागो भाई , शत्रु इसी को माना हूँ।
तुम जागे तो देश जगेगा , पापी नेता भागेगा;
अधिकारों का ध्यान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
86
भूखी प्यासी नंगी जनता , दर्द तुम्हारा जाना हूँ।
आज़ाद नहीं हो दास बने , हैरानी यह माना हूँ।
बिक जाते हो गिरवी होकर , हो तुम मिट्टी के माधो;
ताक़त का आभास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
87
भगुला भक्तों को पहचानो , बार-बार समझाना हूँ।
प्रजा हितैषी नहीं सही में , दाग़ देश पर माना हूँ।
सत्ता जब तक इन हाथों में , कठपुतली-सा नाचोगे;
मन का पगलो भ्रम मिटवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
88
तान नहीं तो जान नहीं है , गान यही पहचाना हूँ।
आन बढ़ाए शान सदा ही , मान इसी को जाना हूँ।
नमन करे जो मन से मन का , प्रेम उसी का होता है;
दहशत को में रोग बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
89
संस्कार लिए सफल हुआ जो , विजय उसी की माना हूँ।
बढ़ा बुराई लेकर आगे , हार उसी की जाना हूँ।
राम बनो तुम श्याम बनो तुम , हाँ! रावण कंश भुलाओ;
नेक पंथ की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
90
अँधी भक्ति अब करना छोड़ो , चाहूँ सच बतलाना हूँ।
पत्थर में भगवान नहीं है , इंसानों में जाना हूँ।
भटकों को जो राह दिखाए , भक्त वही इक सच्चा है;
हरि की गाथा मैं समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
91
बुरे समय में साथ करे जो , हरि उसमें ही माना हूँ।
मौन रहे जो संकट में भी , पत्थर उसको जाना हूँ।
उस पत्थर की पूजा करना , अँधिभक्ति घोर कहलाए;
सोये मन की नींद उड़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
92
सही गलत की पहचान करे , शिक्षित उसको माना हूँ।
बिना पढ़े ज्ञानी कहलाया , संत कबीरा जाना हूँ।
सोच समझ कर गलती करता , काल उसी का आया है;
लाख टके की बात बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
93.
बनो आत्मनिर्भर पहले तुम , हिम्मत इसको माना हूँ।
जीवन होगा मंगलदायी , सिर चाहूँ उठवाना हूँ।
कब तक कमज़ोरी में जीकर , शोषण ही करवाओगे;
स्वाभिमान तुमको सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
94.
शिक्षा का औज़ार सदा ही , हितकारी मैं माना हूँ।
अधिकारों का ज्ञान कराए , संबल इसको जाना हूँ।
हाथों की अब भूल लकीरें , तोड़ भाग्य की जंज़ीरें;
श्रम के पथ पर तुम्हें चलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
95.
पत्थर पूजे आराम नहीं , चाहूँ भ्रम भुलवाना हूँ।
मन की कालिख दूर करो तुम , पूजा इसको जाना हूँ।
गीता बाइबिल कुरान यही , गुरु-ग्रंथ इसी से आए;
मन को धार्मिक स्थल बनवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
96.
बढ़ो प्रकृति की ओर सदा ही , खान गुणों की माना हूँ।
खुद को लुटा स्नेह बरसाए , देवी इसको जाना हूँ।
क्षति इसको पहुँचाकर पगलो , बात न करना पूजा की;
पूजनीय इसको बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
97.
तरुवर नदियाँ सागर पर्वत , दाता इनको माना हूँ।
भू चाँद सितारे सूर्य-चंद्र , नेक इन्हें पहचाना हूँ।
जीवन शिक्षा सुख रक्षा सब , इनसे ही हम पाते हैं;
वंदन इनका ही करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
98.
जीवन प्रकृति विनाश यही है , तनिक नहीं उलझाना हूँ।
पूजो तो जीवन खिल जाए , ह्रास मृत्यु ही माना हूँ।
संकट देकर भी सिखलाती , बच्चों को पाठ पढ़ाती;
माँ रूप इसी में दिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
99.
भूकंप बाढ़ सूख सुनामी , रोग प्रकृति से जाना हूँ।
किया निराश इसे मानव ने , कोप इसी का माना हूँ।
करे असंतुलित जिसे मानव , संतुलित प्रकृति करती वो;
तुम्हें आपदा-सच समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
100.
जुड़ो प्रकृति से मन हर्षाओ , चाहूँ सुख समझाना हूँ।
नूतन पल-पल रूप बदलती , मोहक हर को जाना हूँ।
इंद्रधनुष की शोभा इसकी , भौर शाम मतवाली हैं;
जल-थल-नभ में नूर दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।
रचनाकार : आर.एस.’प्रीतम’
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