Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Aug 2020 · 15 min read

#कौन कहे अनजाना हूँ //सौ रुबाइयाँ

# कौन कहे अनजाना हूँ//रुबाइयाँ

1.
प्रेम लिए मस्ती में जीता , एक नया दीवाना हूँ।
ग़म को ठोकर मार भगाऊँ , ताक़त का नज़राना हूँ।
दूर चला जाऊँगा फिर भी , याद तुझे मैं आऊँगा;
दिल में बसता हूँ मैं दिल से , कौन कहे अनजाना हूँ।

2.
जो ख़्वाब सजाए आँखों में , हासिल करके माना हूँ।
कथनी करनी एक रखूँगा , बस इतना ही जाना हूँ।
पीर नहीं हूँ मैं निर्बल की , गिरते सदा उठाये हैं;
एक नज़र से देखा सबको , कौन कहे अनजाना हूँ।

3.
फूल खिलाऊँगा पत्थर में , आशाओं का आना हूँ।
मौसम संग बदल जाऊँगा , ऐसा नहीं बहाना हूँ।
संकट हिम्मत से हारा है , भाव यही बस प्यारा है;
प्यारा सबको प्यारा लगता , कौन कहे अनजाना हूँ।

4.
खुद को खुद से जीता पहले , चलने की फिर ठाना हूँ।
आँसू आहें कमजोरी हैं , मैं ताक़त- दीवाना हूँ।
लिया नहीं है दिया सही है , सीख भरे काम वही है;
आँसू पोछूँ औरों के तो , कौन कहे अनजाना हूँ।

5.
जोश भरे पथ के हारों में , मैं वो मधुर तराना हूँ।
जहाँ पहुँच कर आराम मिले , मैं वो ठौर ठिकाना हूँ।
प्यासों के अधरों का जल हूँ , उम्मीदों का मैं कल हूँ;
राह दिखाऊँ भटको को मैं , कौन कहे अनजाना हूँ।

6.
न्याय दिलाता हूँ शोषित को , नादानों पर दाना हूँ।
पाकर जिसको ख़ुशियाँ बरसे , मैं वो नेक खज़ाना हूँ।
पीकर जिसको मस्ती आए , जो पाये झूमे गाए;
मैं मौज़ों का मानो प्याला , कौन कहे अनजाना हूँ।

7.
लीक नयी है चाल नयी है , मैं जाना पहचाना हूँ।
झर-झर बरसे ना शोर करे , सावन मेघ सुहाना हूँ।
मिट्टी को सौंधी मैं करता , हरियाली उर में भरता;
प्रेम धरा को देकर जाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

8.
शासन सत्ता का लोभ नहींं , हाँ!संतोष घराना हूँ।
तरुवर-सी हस्ती है मेरी , सीखा प्यार लुटाना हूँ।
गाँव शहर की देख उदासी , करने आया हूँ दासी;
आज़ादी मैं देने आया , कौन कहे अनजाना हूँ।

9.
होठों पर बस मुस्क़ान रहे , रस का मैं मयखाना हूँ।
सागर जैसा गहरा दिल है , सीखा भेद भुलाना हूँ।
चाँद लिए हूँ मन में अपने , शीतलता बरसाता हूँ;
नेकी कर सबको हर्षाता , कौन कहे अनजाना हूँ।

10.
रिश्ते नाते दिल से दिल के , सत्य यही मैं जाना हूँ।
जितना जग में प्यार लुटाऊँ , उतना खुद को माना हूँ।
ख़ुशबू देकर हँसता हूँ मैं , फूलों-सा खिलता हूँ मैं;
काँटों को भी अपना कहता , कौन कहे अनजाना हूँ।

11.
एक किराए का घर जग है , इतना अब तक जाना हूँ।
जितना प्यार लुटाऊँ इसमें , उतना लेकर जाना हूँ।
भौतिकता से भाग रहा हूँ , नैतिकता में जाग रहा;
सबको ऐसा पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

12.
लूट रहे दोनों हाथों से , उनको भटका माना हूँ।
इक दिन खुद ही लुट जाएंगे , चाहूँ ये समझाना हूँ।
दर्द दिया है जिसने जितना , उतना वो भी पाएगा;
अपना समझूँ याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

13.
सुख-दुख दोनों मन की बातें , ऊपर इनसे जाना हूँ।
जो मिलता है उसमें ख़ुश हूँ , मैं रब का दीवाना हूँ।
चाहत की दौलत है प्यारी , नफ़रत जिससे है हारी;
मोहब्बत के दीप जलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

14.
गुलशन-गुलशन फूल खिले हैं , भँवरा मन को माना हूँ।
प्रेम लिए रस को पीता है , मैं रस का दीवाना हूँ।
रस बिन जग है सूना-सूना , मानो तुम मौत नमूना;
मैं रस की ही बातें करता , कौन कहे अनजाना हूँ।

15.
दिल को जबसे पढ़ना सीखा , मैं इतना मस्ताना हूँ।
पल-पल को दिल से जीता हूँ , निखरूँ मैं रोजाना हूँ।
ये जीवन कितना प्यारा है , मानव फिर क्यों हारा है?
हारों को मैं राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

16
मीठा बोलूँ ऊँचा सोचूँ , समझूँ प्रीत निभाना हूँ।
बुरी बात पर ध्यान नहीं है , अच्छी का दीवाना हूँ।
संगत अच्छी रंगत अच्छी , यूँ दिन रात सुहाने हैं;
आदर्श बनूँ मैं सबका तो , कौन कहे अनजाना हूँ।

17.
इज़्ज़त सबको देना सीखा , सीखा प्रेम तराना हूँ।
व्यवहार ख़रा रखता अपना , ज़रा नहीं ललचाना हूँ।
यार गले के हार बनेंगे , दिल रोशन प्यार करेंगे;
प्यार सभी को मैं सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

18.
आँसू आहों का मोल करे , पापी उसको जाना हूँ।
भार धरा पर कहता उसको , देता दिल से ताना हूँ।
मज़बूरी को सूली करता , ख़ुद को करता मामूली;
ऐसो को मैं चोर बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

19.
माँ की ममता स्नेह पिता का , भूला कभी भुलाना हूँ।
आशीष बड़ों का सफल करे , चाहूँ पलपल पाना हूँ।
अपने-अपने ही होते हैं , सपने-सपने होते हैं;
अपनों को सपना ना समझूँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

20.
सबमें खुद को रख के देखूँ , समझूँ भेद हटाना हूँ।
सबसे पहले मानव हूँ मैं , मानवता दीवाना हूँ।
मंदिर मस्ज़िद गिरजा चाहे , देखे हों गुरुद्वारे भी;
संदेश सभी का एक वही , कौन कहे अनजाना हूँ।

21.
धर्म बड़ा ना जाति बड़ी है , कर्मों से पहचाना हूँ।
मूल अंश का समझाए जो , मानूँ उसको गाना हूँ।
अभिमानी झुकता आया है , प्रेमी पल-पल झूमा है;
प्रेमी का ही संग करूँ मैं , कौन कहे अनजाना हूँ।

22.
जीवन हीरे तुल्य मिला है , समझूँ तो मैं दाना हूँ।
ना समझूँ तो नादान बनूँ , अंत समय पछताना हूँ।
पूजा करता जीवन की मैं , हरपल में ख़ुशहाल रहूँ;
सब पर सुख की छाया करता , कौन कहे अनजाना हूँ।

23.
मालिक ने इंसान बनाया , नेक सभी को जाना हूँ।
भेद करे शैतान बने वो , इतना ही पहचाना हूँ।
प्रकृति सभी को देती आई , कब किससे कुछ चाहा है;
याद सभी को ये करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

24.
काम करो तुम मान करो तुम , चाहूँ ये समझाना हूँ।
छलिया को मिलता चैन नहीं , चाहूँ ये सिखलाना हूँ।
माया सुख का नाश करेगी , भ्रमित बुद्धि रोज फिरेगी;
जीवन इससे मुक़्त कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

25.
आनंद छिपा है कविता में , अमर इसी को माना हूँ।
जितनी बार पढ़ा है इसको , कम कब इसको जाना हूँ।
अक्षय पात्र कहूँ रस का मैं , सदियाँ पीती जाएँगी;
सबको इसका राज बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

26.
सच्चे भावों से बनती है , मैं कविता दीवाना हूँ।
जिसने इसका पान किया है , उसको ख़ुश ही जाना हूँ।
आनंद भरा है कविता ने , सच्ची राह दिखाई है;
सबको इसकी लत करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

27.
भौतिक चीजें मिट जाती हैं , मैं भी ये सच माना हूँ।
काव्य अमर है सबको कहता , गाता यही तराना हूँ।
प्रिय की यादें सुख देती हैं , जीवन भर ये रहती हैं;
कविता प्रियसी यही सुझाता , कौन कहे अनजाना हूँ।

28.
सुख हों चाहे दुख हों मन में , कविता लिखना जाना हूँ।
लिख भावों को खुश होता मैं , सौभाग्य इसे माना हूँ।
देख तन्हाई हार गई है , मेरे इस सुख के आगे;
सुख की सबको राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

29.
ढंग नया है चाल नयी है , राहें मखमल माना हूँ।
हर मंज़र हितकारी लगता , जबसे कविता जाना हूँ।
तितली बनके उड़े कल्पना , नयनों में उद्यान रहे;
सबको उड़ना यार सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

30.
स्वप्न सजाकर इंद्रधनुष-से , नींद स्वर्ग की माना हूँ।
धूप लगे रेशम-सी मुझको , छाँव बसंती जाना हूँ।
नील झील में कमल सरीखा , कविता मुझे हँसाती है;
सबको कविता मीत बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

31.
निश्चित जीत लगे कायर भी , लड़ता जाए जाना हूँ।
हार लगे तब लड़ता उसको , असली योद्धा माना हूँ।
कमल सदा कीचड़ में खिलता , फिर भी हँसना सीखा है;
हँसने की मैं सोच जगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

32.
सौंदर्य निहारा जब मैंने , हर्षित मन को जाना हूँ।
हर्षित मन हो रोग लगे ना , उम्र बढ़े पहचाना हूँ।
उम्र बढ़े तो लंबे नाते , नातें होते हितकारी;
सबके हित की बात बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

33.
यार बनो जयकार करो तुम , यारी मैं भी जाना हूँ।
कृष्ण सुदामा-सी यारी हो , यारी उसको माना हूँ।
संकट में है साथ निभाना , ख़ुशियों संग मुस्क़राना;
यारी की में रीत बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

34.
भेदभाव में जीवन रोता , प्यार हँसाए जाना हूँ।
चारों और सुनूँ फिर रोना , मूर्ख मनुज को माना हूँ।
अपने दुख का कारण खुद है , मान रहा है ग़ैरों को;
सच्चाई की शक्ल दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

35.
प्रेम पंथ की धूम रही है , प्रेमी सिद्ध सुजाना हूँ।
मोर नृत्य-सा आनंद मिले , जब प्रेमी मन माना हूँ।
विष अमृत बने प्रेम संग से , मन में जोश उमंग रहे;
जोश सभी में भरना चाहूँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

36.
जग जीवन ये भार नहीं है , उपहार इसे माना हूँ।
चार वेद-से भाव भरे हैं , इंद्रधनुष-सा जाना हूँ।
फूलों-सी कोमलता इसमें , गंगा जल-सी शीतलता;
हर जीवन में रंग खिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

37.
आवाज़ बनूँ लाचारों की , इसको सेवा माना हूँ।
इन आँखों में मालिक बसता , देखा तो पहचाना हूँ।
लाख दुवाएँ देते मुझको , तन-मन यूँ ख़ुशहाल रह;
ख़ुशहाली का राज सुझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

38.
मन में द्वेष नहीं रखता हूँ , शत्रु इसे मैं जाना हूँ।
कोलाहल से दूरी रखता , सीखा अमन सजाना हूँ।
मन पर काबू हो जाए तो , जीत हमारी होती है;
सबकी यारों जीत कराऊँ , कौन कहे अनजाना।

39.
सूरत सीरत एक रखूँ मैं , अंतर धोखा माना हूँ।
धोखा देकर इक दिन सबकी , नज़रों से गिर जाना हूँ।
विश्वास मिटे फिर ना बनता , टूटा पल्लव कब जुड़ता;
बिन ठोकर की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

40.
अंदर की आवाज़ सुनूँ मैं , सत्य उसी को जाना हूँ।
पापी को भी शिक्षा देती , चाहूँ यही सिखाना हूँ।
सुनके भी जो गुने नहीं पर , उनकी ये नादानी है;
नादानों को सबक सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

41.
हार हुई वो स्वीकार हुई , फिर कोशिश की ठाना हूँ।
गिर-गिर के ही चलना सीखा , बचपन से पहचाना हूँ।
काम करे वो गलती करता , गलती मान सुधार करे;
हारे को मैं पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

42.
विश्वास रहे मन काम बने , चाहूँ धैर्य बढ़ाना हूँ।
धैर्य रहे सब जीता जाए , सीख बड़ी ये माना हूँ।
मंदिर में भगवान नहीं है , विश्वास छिपा जगता है;
मन अँधियारा दूर भगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

43.
सही गलत की समझ रखे जो , जागा उसको जाना हूँ।
गलत राह को सही बताए , भटका उसको माना हूँ।
माया पासा फैंका करती , गलत काम करवाती है;
माया से मैं मुक्ति दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

44.
साथी बनके जीना आया , तबसे जीना जाना हूँ।
जो अपनी ही खातिर जीता , यार कमीना माना हूँ।
नदियाँ सागर पर्वत तरुवर , सब देना ही जाने हैं;
सेवा के मैं गुण बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

45.
यार ग़रीबी माँजा करती , अभिशाप नहीं माना हूँ।
धूप छाँव सा जीवन अपना , सहकर इसको जाना हूँ।
प्यार परीक्षाओं से करके , नेक सफलता मिलती है;
धैर्य लग्न की सोच जगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

46.
प्रतिकूल समय अनुकूल करे , महापुरुष पहचाना हूँ।
करे बहाने पीछे हटता , कायर उसको माना हूँ।
कायर मरता है पल-पल में , बोझ धरा पर कहलाए;
आन बान की याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

47.
मरकर भी जीते हैं जग में , वीर उन्हें ही माना हूँ।
जी कर भी जो मरे हुए हैं , कायर उनको जाना हूँ।
बिन अर्थों का जीवन क्या है , जीवन वह पाठ पढ़ाए;
जीवन का मैं अर्थ सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

48.
फूट डाल कर जो लड़वाता , नीच उसे मैं माना हूँ।
प्यार जगाकर जो मिलवाए , मीत उसे मैं जाना हूँ।
दौलत पाना ही चैन नहीं , चैन मिले व्यवहारों में;
मानव का मैं धर्म बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

49.
आँखें सपने भूल गई जो , बेबस उनको माना हूँ।
मन में जिसके प्यार नहीं है , जड़-सा उसको जाना हूँ।
क़दम वही जो बिन थक चलते , मंज़िल पाकर दम लेते;
सूर्य-चंद्र की रीत सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

50.
शक्ति शील सुंदरता को मैं , मन का गहना माना हूँ।
जिसने भी पहन लिया इनको , सिद्ध पुरुष पहचाना हूँ।
दीप जला जीत हवाओं से , यश उसने ही पाया है;
यश की सबको राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

51.
निर्बल-रौंदे खुशी मनाए , नीच उसे मैं माना हूँ।
हाय लगेगी फिर रोयेगा , बार-बार समझाना हूँ।
बिन सीढ़ी चोटी चढ़ गिरना , दर्द बड़ा ही देता है;
सबको सीधी राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

52.
झरनों का मैं राग सुनाऊँ , नदियों का दीवाना हूँ।
सागर गहरा दिल रखता हूँ , दर्द सभी का जाना हूँ।
बादल बनके गिरूँ धरा पर , फ़सलों को हर्षाऊँ मैं;
सबके दिल की प्यास बुझाता , कौन कहे अनजाना हूँ।

53.
बेबस आँखों का सपना हूँ , लाचारी पहचाना हूँ।
अधिकारों की बात करूँ मैं , समता का पैमाना हूँ।
अँधों की आँखों का तारा , बहरों की आवाज़ बना;
सबको हक का पाठ पढ़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

54.
आशीष बुज़ुर्गों का लेकर , फूला नहीं समाना हूँ।
पथ के काँटे फूल बनेंगें , स्नेह इसी को जाना हूँ।
सम्मान बुज़ुर्गों का करते , शोहरत उन्होंने पाई;
सबको इनका ध्यान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

55.
जीवन पल-पल बदला करता , मैं तू आना जाना हूँ।
वैभव पाकर गिरगिट बनता , कहूँ उसे पगलाना हूँ।
नींद खुले तो सपना टूटे , महल बनें वो गिर जाएँ;
सच का मैं दर्पण दिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

56.
लज्जा देकर लज्जा मिलती , चाहूँ ये समझाना हूँ।
प्रेम बटे तो घर-घर फैले , अमृत इसे मैं माना हूँ।
विष की फिर जो पूजा करता , मानव बड़ा अभागा है;
अपना समझूँ ज्ञान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

57.
युद्ध सदा घाटे का सौदा , चाहूँ प्रेम जगाना हूँ।
घट-घट में भगवान बसा है , चाहूँ घृणा भगाना हूँ।
एक नूर से संसार बना , फिर ये लड़ना भिड़ना क्यों?
सबका भ्रम मैं दूर भगाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

58.
धरा-गगन मिल ख़ुशियाँ बाँटें , मात-पिता सम जाना हूँ।
मनुज कुकुर बन झपट रहा है , मूर्ख इसे मैं माना हूँ।
प्रेम-भरा बँटवारा होता , सब हँसते मनु ना रोता;
नफ़रत की मैं आग बुझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

59.
भाव हृदय के पवित्र रखता , मानवता दीवाना हूँ।
संवेदनशील रहूँ प्रतिपल , सात्विकता पहचाना हूँ।
देख मशीनी युग की चालें , आधार नहीं भूला हूँ;
संस्कारों का पथ बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

60.
तनिक विवाद हृदय छूता है , परिवर्तन की ठाना हूँ।
बंधुत्व रहे जग में हँसता , जीत इसे ही माना हूँ।
चोरी ज़ारी लूट शून्यता , हाँ! हार बलात्कारी है;
इनसे गर मैं मोह छुड़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

61.
भाव मरे हों जिस जीवन के , मौत उसे मैं माना हूँ।
रिश्ते-नाते पहचान करे , चेतन उसको जाना हूँ।
नर सेवा नारायण सेवा , नर में ही भगवान रहे;
मूल अंश का ज्ञान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

62.
दाता को भगवान कहूँ मैं , गाऊँ उसका गाना हूँ।
छीने उसको शैतान कहूँ , मूढ़ उसे मैं जाना हूँ।
माल मिलावट का बेचे जो , वो भी पापी कहलाए;
गलती का अहसास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

63.
लाज लूटता अबला की जो , लानत उसको माना हूँ।
दोजख़ में भी जगह नहीं है , चाहूँ उसे बताना हूँ।
माँ बहनों की इज़्ज़त करता , इंसान वही होता है;
इंसानों का धर्म बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

64.
जिसके मन में प्रेम भरा हो , राजा उसको माना हूँ।
विष फैलाता दौलत पाकर , रंक उसे मैं जाना हूँ।
यम की आँखें देख रही सब , दृश्य वही दिखलाएँगी;
समय रहे आभास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

65.
छिप-छिप के अपराध करे तू , चाहूँ तुझे बताना हूँ।
चलचित्र तुझे तड़फाएँगे , चाहूँ मैं समझाना हूँ।
मात-पिता पुत्र विहीन किए , दशरथ ने फल पाया था;
एक कथा संदेश सुनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

66.
जीवन है प्रिय का आलिंगन , मनहर इसको माना हूँ।
अदा-अदा की नवल कहानी , मैं हर का दीवाना हूँ।
प्यार भरा समय बना प्याला , मन- तृष्णा दूर भगाता;
जीवन रस का पान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

67.
प्रिय के अरुण कपोलों को मैं , मधु का प्याला माना हूँ।
यौवन की प्रीत अदाओं से , मादकता को जाना हूँ।
मस्ती नयनों में सावन की , होंठ कुसुम की हाला हैं;
प्रिय का सबको स्वप्न दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

68.
मीठी बातें चुंबक लगती , सुनने का दीवाना हूँ।
स्पर्श लगे है रेशम-रेशम , आलिंगन से जाना हूँ।
सुख वैभव का वो आलय है , जिसके आगे जग फीका;
मन से मन का मिलन कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

69.
सीता पाने को राम बनो , चाहूँ मैं बतलाना हूँ।
आदर मन से मन का करके , प्रेम रंग पहचाना हूँ।
संग-संग जब साहिल चलते , प्रेम नदी तब बहती है;
प्रेम मिलन का अर्थ सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

70.
शब्द-कुसुम हो माला बनते , कहता उसे तराना हूँ।
सुर लय की ख़ुशबू महकेगी , जिसका मैं दीवाना हूँ।
मिलन वही जो मन को भाए , जो देखे वो हर्षाए;
संतुलन सभी को सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

71.
भेदभाव तो विष उगलेगा , अजगर इसको माना हूँ।
जिसपर इसका असर नहीं है , चंदन उसको जाना हूँ।
चंदन-चंदन देखूँ जग में , चंदन के गुण गाऊँ मैं;
सबको चंदन याद दिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

72.
प्रेम किया था मीरा ने भी , राधा को भी जाना हूँ।
संत कबीरा प्रेमी जाना , नानक प्रेमी माना हूँ।
रैदास हुआ सच्चा प्रेमी , गंगा दिखा कठौती में;
प्रेम जता कर अमृत पिलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

73.
प्रेम डगर पर चलना सीखा , सत्य प्रेम को माना हूँ।
प्रेम बिना है जग सूना ये , चाहूँ प्रेम सिखाना हूँ।
प्रेम लिए आभास स्वर्ग का , प्रेम सदा मंगलदायी;
प्रेम लिए मैं प्रेम सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

74.
सूर्य-चंद्र भी प्रेमी जग के , प्रेम अटल मैं माना हूँ।
सही समय पर आना जाना , कभी नहीं झुठलाना हूँ।
सीख सभी इनसे ही लेना , निश्छल प्रेमी कहलाना;
प्रेम रंग सब पर बरसाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

75.
संग समय के जो चलता है , आदर उसका जाना हूँ।
कदर समय की जो ना करता , बुद्धिहीन मैं माना हूँ।
अनुशासन में जीनेवाला , सदा सफलता पाएगा;
सफल योग की बात सुनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

76.
सब कलियाँ खिल फूल बनेंगी , सत्य नहीं मैं माना हूँ।
चाही ख़ुशियाँ हमें मिलेंगी , अटल नहीं मैं जाना हूँ।
सही कर्म से जो मिल जाए , ख़ुशियाँ उसमें होती हैं;
ख़ुशियों का मैं संग कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

77.
जीवन होता एक कहानी , इतना समझा जाना हूँ।
सबके किरदार अलग होते , चाहूँ यही बताना हूँ।
जो किरदार मिला है तुमको , उसे बड़ा कर जाना है;
कलाकार मैं तुम्हें बनाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

78.
कर्म बिना है जीवन जड़-सा , गति को चेतन माना हूँ।
ठहरा जल भी सड़ जाता है , बहता निर्मल जाना हूँ।
चट्टानों को तोड़ा जल ने , झरना तब कहलाया है;
संघर्ष निखारे समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

79.
सुप्त-शक्तियों के राजा हो , रंक नहीं मैं माना हूँ।
क्यों बनते तुम लाचार मरे , जीत जोश की जाना हूँ।
सही दिशा की ओर बढ़ो तुम , क्षमता अपनी पहचानो;
मार्ग विजय का मैं बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

80.
ये संसार दुखों का घर है , मैं दुख का दीवाना हूँ।
दूर भगाऊँ फिर भी आए , सच्चा साथी माना हूँ।
सुख-दुख का जब अंतर भूला , फूला नहीं समाया मैं;
जीने का आनंद सिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

81
अपमान नहीं सम्मान करूँ , सबको अपना माना हूँ।
ऊँच नीच का भाव मरा है , समता को पहचाना हूँ।
पशु पक्षी मानव सब प्यारे , सब में है नूर ख़ुदा का;
स्नेह-सुरा का पान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

82
मन को पत्थर करने वालो , शैतान तुम्हें माना हूँ।
प्रेमभाव की पूजा करता , गाता इसका गाना हूँ।
मानव आँसू देनेवाले , ख़ुद भी आँसू पाते हैं;
सुख के सागर में नहलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

83
मिट जाए जो देश-प्रेम में , नायक उसको माना हूँ।
गद्दारी का झूला झूले , चाहूँ उसे मिटाना हूँ।
पर नारी पर डोरे डाले , गिरा हुआ कहलाए वो;
मानवता की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

84
वादों पर जो अटल रहेगा , नेता उसको माना हूँ।
गिरगिट-सा बदला करता है , मानवता अरि जाना हूँ।
बहरुपियों को दूर भगाओ , देश तभी उठ पाएगा;
क़ीमत वोटों की समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

85
कब जागेगी जनता सोई , चाहूँ रोज जगाना हूँ।
स्वार्थ अभी तुम त्यागो भाई , शत्रु इसी को माना हूँ।
तुम जागे तो देश जगेगा , पापी नेता भागेगा;
अधिकारों का ध्यान कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

86
भूखी प्यासी नंगी जनता , दर्द तुम्हारा जाना हूँ।
आज़ाद नहीं हो दास बने , हैरानी यह माना हूँ।
बिक जाते हो गिरवी होकर , हो तुम मिट्टी के माधो;
ताक़त का आभास कराऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

87
भगुला भक्तों को पहचानो , बार-बार समझाना हूँ।
प्रजा हितैषी नहीं सही में , दाग़ देश पर माना हूँ।
सत्ता जब तक इन हाथों में , कठपुतली-सा नाचोगे;
मन का पगलो भ्रम मिटवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

88
तान नहीं तो जान नहीं है , गान यही पहचाना हूँ।
आन बढ़ाए शान सदा ही , मान इसी को जाना हूँ।
नमन करे जो मन से मन का , प्रेम उसी का होता है;
दहशत को में रोग बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

89
संस्कार लिए सफल हुआ जो , विजय उसी की माना हूँ।
बढ़ा बुराई लेकर आगे , हार उसी की जाना हूँ।
राम बनो तुम श्याम बनो तुम , हाँ! रावण कंश भुलाओ;
नेक पंथ की राह दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

90
अँधी भक्ति अब करना छोड़ो , चाहूँ सच बतलाना हूँ।
पत्थर में भगवान नहीं है , इंसानों में जाना हूँ।
भटकों को जो राह दिखाए , भक्त वही इक सच्चा है;
हरि की गाथा मैं समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

91
बुरे समय में साथ करे जो , हरि उसमें ही माना हूँ।
मौन रहे जो संकट में भी , पत्थर उसको जाना हूँ।
उस पत्थर की पूजा करना , अँधिभक्ति घोर कहलाए;
सोये मन की नींद उड़ाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

92
सही गलत की पहचान करे , शिक्षित उसको माना हूँ।
बिना पढ़े ज्ञानी कहलाया , संत कबीरा जाना हूँ।
सोच समझ कर गलती करता , काल उसी का आया है;
लाख टके की बात बताऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

93.
बनो आत्मनिर्भर पहले तुम , हिम्मत इसको माना हूँ।
जीवन होगा मंगलदायी , सिर चाहूँ उठवाना हूँ।
कब तक कमज़ोरी में जीकर , शोषण ही करवाओगे;
स्वाभिमान तुमको सिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

94.
शिक्षा का औज़ार सदा ही , हितकारी मैं माना हूँ।
अधिकारों का ज्ञान कराए , संबल इसको जाना हूँ।
हाथों की अब भूल लकीरें , तोड़ भाग्य की जंज़ीरें;
श्रम के पथ पर तुम्हें चलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

95.
पत्थर पूजे आराम नहीं , चाहूँ भ्रम भुलवाना हूँ।
मन की कालिख दूर करो तुम , पूजा इसको जाना हूँ।
गीता बाइबिल कुरान यही , गुरु-ग्रंथ इसी से आए;
मन को धार्मिक स्थल बनवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

96.
बढ़ो प्रकृति की ओर सदा ही , खान गुणों की माना हूँ।
खुद को लुटा स्नेह बरसाए , देवी इसको जाना हूँ।
क्षति इसको पहुँचाकर पगलो , बात न करना पूजा की;
पूजनीय इसको बतलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

97.
तरुवर नदियाँ सागर पर्वत , दाता इनको माना हूँ।
भू चाँद सितारे सूर्य-चंद्र , नेक इन्हें पहचाना हूँ।
जीवन शिक्षा सुख रक्षा सब , इनसे ही हम पाते हैं;
वंदन इनका ही करवाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

98.
जीवन प्रकृति विनाश यही है , तनिक नहीं उलझाना हूँ।
पूजो तो जीवन खिल जाए , ह्रास मृत्यु ही माना हूँ।
संकट देकर भी सिखलाती , बच्चों को पाठ पढ़ाती;
माँ रूप इसी में दिखलाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

99.
भूकंप बाढ़ सूख सुनामी , रोग प्रकृति से जाना हूँ।
किया निराश इसे मानव ने , कोप इसी का माना हूँ।
करे असंतुलित जिसे मानव , संतुलित प्रकृति करती वो;
तुम्हें आपदा-सच समझाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

100.
जुड़ो प्रकृति से मन हर्षाओ , चाहूँ सुख समझाना हूँ।
नूतन पल-पल रूप बदलती , मोहक हर को जाना हूँ।
इंद्रधनुष की शोभा इसकी , भौर शाम मतवाली हैं;
जल-थल-नभ में नूर दिखाऊँ , कौन कहे अनजाना हूँ।

रचनाकार : आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना

Language: Hindi
6 Likes · 5 Comments · 959 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from आर.एस. 'प्रीतम'
View all
You may also like:
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
बस मुझे मेरा प्यार चाहिए
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
दौर ऐसा हैं
दौर ऐसा हैं
SHAMA PARVEEN
सर पर हाथ रख दूं तो आजाद हो जाएगा,
सर पर हाथ रख दूं तो आजाद हो जाएगा,
P S Dhami
'बेटी बचाओ-बेटी पढाओ'
'बेटी बचाओ-बेटी पढाओ'
Bodhisatva kastooriya
सलाह के सौ शब्दों से
सलाह के सौ शब्दों से
Ranjeet kumar patre
🙏 🌹गुरु चरणों की धूल🌹 🙏
🙏 🌹गुरु चरणों की धूल🌹 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बहे संवेदन रुप बयार🙏
बहे संवेदन रुप बयार🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
कृष्णकांत गुर्जर
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
Keshav kishor Kumar
मुक्तक _ चाह नहीं,,,
मुक्तक _ चाह नहीं,,,
Neelofar Khan
//•••कुछ दिन और•••//
//•••कुछ दिन और•••//
Chunnu Lal Gupta
पितृ दिवस पर....
पितृ दिवस पर....
डॉ.सीमा अग्रवाल
मन  के  दीये  जलाओ  रे।
मन के दीये जलाओ रे।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दीपक और दिया
दीपक और दिया
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
Manoj Mahato
रमेशराज की माँ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की माँ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
दीपक सरल के मुक्तक
दीपक सरल के मुक्तक
कवि दीपक बवेजा
मुकाबला करना ही जरूरी नहीं......
मुकाबला करना ही जरूरी नहीं......
shabina. Naaz
4450.*पूर्णिका*
4450.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सच ही सच
सच ही सच
Neeraj Agarwal
सितमज़रीफी किस्मत की
सितमज़रीफी किस्मत की
Shweta Soni
हास्य गीत
हास्य गीत
*प्रणय*
एक सूरज अस्त हो रहा है, उस सुदूर क्षितिज की बाहों में,
एक सूरज अस्त हो रहा है, उस सुदूर क्षितिज की बाहों में,
Manisha Manjari
संघर्ष की राहों पर जो चलता है,
संघर्ष की राहों पर जो चलता है,
Neelam Sharma
"काश"
Dr. Kishan tandon kranti
এটা আনন্দ
এটা আনন্দ
Otteri Selvakumar
टूटे पैमाने ......
टूटे पैमाने ......
sushil sarna
*कभी लगता है जैसे धर्म, सद्गुण का खजाना है (हिंदी गजल/गीतिका
*कभी लगता है जैसे धर्म, सद्गुण का खजाना है (हिंदी गजल/गीतिका
Ravi Prakash
खोटे सिक्कों के जोर से
खोटे सिक्कों के जोर से
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
अंदाजा था तुम्हें हमारी हद का
अंदाजा था तुम्हें हमारी हद का
©️ दामिनी नारायण सिंह
Loading...