कौन आएगा
है धरा उदघोष करती लालिमा आकाश की ।
शुष्क होते ताल पोखर क्यों प्रतीक्षा प्यास की ।
चूक गया गर आज फिर तु कल कहाँ से पाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
यह जमाना है तेरे संग जब तलक तू होश में है ।
हो जरा मगरूर तू क्यों बेवजह ही जोश में है ।
खंडहर में रौशनी तू फिर कहाँ से लाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
बस्तियों में आग लगते हैं दिए जलते नहीं ।
झोपड़ी में ध्यान देना मोम तक गलते नहीं ।
पत्थरों पर दोष मढ़ने कौन जाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
खोल अपने पंख तुझको है बुलाता आसमां ।
हौसलों को दे दिशा तू चल हवा आजमा ।
डूबते सूरज के किस्से कौन गाएगा ?
खुद उठो तिनके जुटाओ , घर परिंदों का बनाने कौन आएगा ?
✍️ धीरेन्द्र पांचाल