कौनसे नशे में धुत हो तुम
कौनसे नशे में धुत हो तुम
ज़ुल्म बढ़ रहा है चुप हो तुम
क्यूं नहीं आते तुम्हारी आंख मे आंसू
आखिर किस खुशी में खुश हो तुम
या तो ज़ालिम के आगे घुटने टेक दिए तुमने
या फिर अपने ज़मीर ही बेच दिए तुमने
क्यूं नहीं आते शिकबे तुम्हारी जुबानों पर
क्या अपने होठों को सिल चुके हो तुम
ये चीख पुकारें क्या सुनाई ही नहीं देती
ये ज़ुल्म ये बर्बरता क्या दिखाई ही नहीं देती
क्यूं तस्वीर का एक रूख ही नज़र आता है
ये इक्तिलाफ का चश्मा क्यूं आंखों पे रखे हो तुम