कोहरा
बहुत सोचा कि
अश्को को भुला
फिर मुस्कुराऊंगी
कभी मुझसे
कभी तुमसे
गल्तियां
हो ही जाती हैं
न बिसरी
धूप की रंगत
तेरे सपने
मेरे अपने
न जाने कब
ढली फिर सांझ
कोहरे
छा ही जाते हैं
बहुत सोचा कि
अश्को को भुला
फिर मुस्कुराऊंगी
कभी मुझसे
कभी तुमसे
गल्तियां
हो ही जाती हैं
न बिसरी
धूप की रंगत
तेरे सपने
मेरे अपने
न जाने कब
ढली फिर सांझ
कोहरे
छा ही जाते हैं