कोहरा (हास्य कविता)
छाया है घना कोहरा
रात ढल रही है
अचानक पत्नी ने
झकझोर कर उठा दिया
बोली :
“सुनो जी जरा बाहर का
मौसम तो देखो
कितना है सुहाना
शुद्ध ताजा हवा है
घुम कर आओ जरा ।”
मन नहीं था
पर सुबह सुबह
मामला पंगे का था
इसलिये निकल पड़ा
घर से
घना था कोहरा
घनघोर था अँधेरा
पड गया एक कुत्ते के
ऊपर पैर
लगा भौंकने
पडा पीछे
तीन चार और
देने लगे साथ उसका
किसी तरह भाग कर
घर आया कुत्तों से
पाया छुटकारा
सांस फूल रही थी
ठंड में भी पसीने से
तरबतर था
सब हाल सुनाया पत्नी को
वह बोली :
” वेरी गुड ऐसे ही दौडोगे तो
मोटापा छट जाऐगा
स्मार्ट हो जाओगे
कुत्तों का क्या
उनके साथ दौडोगे
तो दोस्त बन जाऐगे
दोस्तों पत्नी तो पत्नी
होती है
अब पत्नी से पंगा ले या
कोहरे से
आप ही बताऐ
स्वलिखित
संतोष श्रीवास्तव भोपाल