कोशिश
फिर रुक के चल
गिर फिर संभल
क्यों ये समझौता
क्यों नहीं हालात बदल
हर कदम एक तलाश
कभी साथ कभी
अकेलेपन का एहसास
क्यों नहीं संपूर्ण बन
संगी साथी ठीक पर
न होना निर्भर
आप ही रास्ते चुन
आप ही मंजिल तय कर
घाव हो या अभाव
धूप हो या छांव
रुके न बढ़ते कदम
थामे न किसी का प्रभाव
टूटे ना किसी कारण से
कभी तेरा मनोबल
फिर रुक के चल
गिर फिर संभल
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)