कोशिश
चिड़िया ने
नन्हें विशाव के
उगते परों को सहलाकर
बड़े प्यार से समझाया
जैसे कभी
उसे उसकी माँ ने था बताया
कि घोंसले से बाहर की दुनिया
आसान नहीं है
वहाँ
खाने पड़ते हैं थपेड़े हवा के
सहनी पड़ती है
गरमी, सरदी, बरसात
दो दाने चुगने की खातिर
बचना पड़ता है
खुद किसी का भोजन बनने से
जगह जगह बिछे
बहेलिए के जाल की भी पहचान जरूरी है
उड़ने की जल्दी हो
तुम्हारी
ऐसी नहीं मजबूरी है
“अच्छा ! माँ !”
विशाव ने भय जनित विस्मय के साथ
विश्वास जताया
और
इस विस्मयकारी दुनिया को
देखने की कोशिश में
अपना पँख फुलाया