कोरोना
कोरोना
-आचार्य रामानंद मंडल
मास्टरनी पत्नी के सहयोग लेल जातिगत जनगनना के पहिला दौर मकान गनना करे पंचायत के गनना ब्लाक मे गेली।दस गो भवन गनना के बाद एगो भवन प्रांगन मे पहुंचली। बरामद पर राखल अंखरा चौकी पर बैठे के चाह ली।तभीये एगो बुढी के आवाज आयल -रुकल जाव।अंखरा चौकी पर न बैठू। हमरा जाजिम बिछाबे देल जाउ।तब बैठल जतैय।हम कहली -कोनो बात न हय।कनिके देर के बात हय। हमरा सभ के देर हो जायत।बुढी बोललन -न।जाजिम बिछाबे दूं।तब बैठब। अंहा सभ अभी अइली हय।फेर कब आयब। अंहा सभ शिक्षक छी। शिक्षक आदरनीय होइ छथिन।
बुढी चौकी पर जाजिम बिछैलन आ कहलन -आबि बैठ के काज करु।
हम पुछलियेन -कै गो बेटा हय।बुढी बोललन -तीन गो बेटा हय।आंसू भरल आंखि आ भर्राइत आवाज मे बोललन -बड़का बेटा न हबे।छोटका बेटा कंहा भाग गेल से पता न हय।मंझला बेटा,पुतोहु आ एकटा पोता हय।
हम पुछलियेन -छोटका बेटा कैला भाग गेल।बुढी डबडबाइत आंख आ रोइत आवाज मे बजलन -वोकर संगत खराब भे गेल रहैय। गांजा,भांग,शराब खाय पियैत रहेय।वोकर बिआहो हो गेल रहेय। औंरी दिखा के बोललन-एगो इहे पोता वोकर जनमल हय।पुतोहुओ छोड़ के चल गेल।
हम पुछलियेन -आ बड़का बेटा।
बुढी बोललन -वो करोना से मर गेल।
हम कहलियेन -कोरोना से।
बुढी बजलन -हं।वो हैदराबाद मे एगो अखबार मे काज करैत रहैय।दू गो बेटी आ पत्नी संग उंहे रहे। पहिले वोकर पत्नी के कोरोना भे गेल रहैय।हमर बेटा छुट्टी लेके वोकरा खूब सेवा सुसुर्सा कैलक।वोकर कोरोना छूट गेलैय आ हमरा बेटा के कोरोना भे गेल।वोकर पत्नी वोकर सेवा सुसुर्सा न कलकैय आ हमर बेटा मर गेल।
हम कहलियेन -सेवा सुसुर्सा न कैलन। कैला।
बुढी बजलन -वोकर पत्नी एगो एनजीओ मे काज करैत रहय।वो वोकरा छुट्टी न देइ। हमर बेटा सेवा सुसुर्सा न होय के कारण मर गेल।
हम पुछलियेन -पुतौहु आ पोती आबि कंहा हय।
बुढी बजलन -सभ हैदराबाद में।वो अभियो वही एनजीओ मे काज करैत हय।वो हमरा सभ के न देखैय हय।
मंझिला बेटा देखभाल करैय हय।पुतोहु आ एकरा से एगो पोता हय।
हम पुछलियेन -कि करैय बेटा।
बुढी बजलन -बाजार पर एगो छोट मोट किराना के दूकान हय।
हम कहलियेन -सभ परिवार एके जगह राखब कि अलग अलग।
बुड्ढी बजलन -सभ के अलग अलग लिख दिऔ। हमरा छोटका बेटा संग लिख दिऔ।
हम कहलियेन -सभ लिख देली।
बुड्ढी अपन पोता से बजलन -बौआ। मम्मी के कहु चाह बनाबे के।
हम कहलियेन -छोड़ दिऔ।
बुड्ढी बजलन -न चाह त पिये के परत। हम्मर मालिक पति जौ तक जीवित रहला। हमरा दरबाजा पर से बिना चाह पीले कोई न गेलन।हम वो रिवाज केना छोड़ दूं।
बचबा चाह लेके आइल।हम एगो कप बुढी के ओर बढैली।
बुड्ढी बजलन -हम आबि चाह न पियैछी। जौं तकि मालिक रहलन।दूंनू गोरे साथे चाह पीबि।
हम कहलियेन -आबि दसखत क दियौ।
बुड्ढी दसखत कैलन – राधा झा।
हम दूनू गोरे परनाम क के उंहा से आगे बढ़ गेली।
याद रह गेल बुढी के डबडबाइत आंखि आ कोरोना।
सर्वाधिकार @रचनाकाराधीन।
रचनाकार -आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी ।