कोरोना
कोरोना
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दिनांक: 16/12/2020
धरातल पर आज उतरी , विपदा अत्यंत ही भारी है।
बेमौत मर रहे हम सारे , कोरोना वो महामारी है।
बंद हुए पिंजरे में मानो , ऐसे बॅंधे हैं नर और नारी।
मिलकर हमको चलना होगा, आज यही है ज़िम्मेदारी।
मिटा भेद अमीर ग़रीब का, एक सा दर्द एक सी पीड़ा।
सदियों से जो कर ना पाया, कर गया छोटा सा कीड़ा।
मानव को मानव ना समझा, कितना बड़ा अहम है तेरा।
एक विषाणु भी ना सॅंभला, इतना छोटा वज़ूद है तेरा।।
कभी स्वप्न देखा ना होगा, ऐसे भी जीवन ठहरेगा।
अब तो समझ ले, हे मानव,कब तक कुदरत से खेलेगा।।
अपने जीवन के लिए, हम सबको नियम निभाना होगा।
मानवता के हित में आज, मिलकर कदम बढ़ाना होगा।।
घेरा जग को महामारी ने, विक्षिप्त हुए सब नर नारी।
बुद्धि का प्रयोग ही कर लो, वरना पड़ेगा हम पर भारी।।
कठिन समय है मेरे मित्रों, पर डरना नहीं ज़रूरी है।
कुछ ही दिनों की बात है यारों, मान नहीं, मजबूरी है।।
लड़ रहे हम बिना दवा के, मानव कितना लाचार है।
क्यों इतना डरता है मानव, तू स्वयं इसका उपचार है।।
दूर-दूर की सलाम नमस्ते, एक साथ जमा ना होना।
मास्क लगाकर ध्यान रखना, नहीं टिकेगा ये कोरोना।।
संजीव सिंह ✍️
(स्वरचित रचना ©️®️)
16/12/2020
द्वारका, नई दिल्ली