कोरोना – 4
कोरोना
पीर दिल की सुनाऊँ कैसे , दर्दे – दिल से मिलाऊँ कैसे
कोरोना की इस त्रासदी से , इस जहां को बचाऊँ कैसे
कलम मेरी हज़ारों – हज़ारों आंसू रो रही है
पीर दिलों की मिटाऊँ कैसे , कोरोना से इस जहां को बचाऊँ कैसे
चीखों का एक समंदर रोशन किया एक वायरस ने
माँ को बेटे से , भाई को बहिन से मिलाऊँ कैसे
आँखों में बस रहा डर , बढ़ रही दिलों की धड़कन
अजब इस डर के भंवर में , ढाढस मैं बंधाऊं कैसे
अजब सन्नाटा पसरा हर शहर हर गली में , गीत मिलन के कैसे हों रोशन
रुक रही सबकी साँसें पल – पल , जीवन ज्योति जगाऊँ कैसे
देवालयों में पसरा सूनापन, मस्जिद चर्च गुरद्वारे भी सूने
प्रभु कृपा हो जाए हम सब पर, तुम्हें प्रभु मैं मनाऊँ कैसे
आँगन सूने दिल भी सूने , रिश्तों के गलियारे सूने
बाट जोह रही उस माँ को , ढाढस मैं बंधाऊं कैसे
बहनों का श्रृंगार है रूठा , सीमा पर जवान है डटा
रिश्तों की इस पावनता के गीत मैं सजाऊँ कैसे