“ कोरोना ”
जहाँ लोगों को प्यार न मिलता हो वहां जीकर क्या करेंगे ?
जहाँ काँटे का कारोबार चलता हो , वहां जीकर क्या करेंगे ,
फूल रो-रोकर अपने हाल सुनाने लगे,
पौधों के बिकने का किस्सा बताने लगे,
क्या कहें ? बताने में वो घबराने लगे,
किसी के एतबार पर वो सकुचाने लगे,
जहाँ लोगों को प्यार न मिलता हो वहां जीकर क्या करेंगे ?
जहाँ काँटे का कारोबार चलता हो , वहां जीकर क्या करेंगे ,
कोरोना भी एक न एक दिन चला जायेगा,
“ इंसानियत ” के आगे वो भी झुक जायेगा ,
“ प्यार की डोरी ” में फँस कर टूट जायेगा,
जहाँ से आया उसी “जहाँ” में लौट जायेगा I
जहाँ लोगों को प्यार न मिलता हो वहां जीकर क्या करेंगे ?
जहाँ काँटे का कारोबार चलता हो , वहां जीकर क्या करेंगे ,
प्यार का छलकता जाम जरा पीते हुए चलो,
जुल्मों से अपने नाते को तोड़ते हुए चलो,
माँ भारती के सपनों को साकार करते चलो,
“राज” इंसान-२ में प्यार का बीज बोते चलो,
जहाँ लोगों को प्यार न मिलता हो वहां जीकर क्या करेंगे ?
जहाँ कांटे का कारोबार चलता हो, वहां जीकर क्या करेंगे,
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देशराज ”राज”