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15 Dec 2020 · 1 min read

कोरोना त्रासदी

वेंटिलेटर पर जूझ रहा था
हाथों में फोन थाम के
बाप साहस दे रहा था
माँ की सिसकिया रोक के ।

खिड़कीयों से बाहर देखता है
पसरा है सन्नाटा घुप्प सा
कुत्ते-बिल्ली सड़क पर रो रहे हैं
अब नही कोई क्यों शोर सा..?

ये क्या हुआ संसार को…?
हंसते मचलते इंसान को..?

साँसें थम ते ही गिर गया
फोन उसके हाथ से
प्लास्टिक में दफ़्न किया
माँ-बाप से दूर आखिरी स्पर्श से ।

मास्क में अकेले रो रहे थे
बेटे की तस्वीर चूमकर कर
मजबूर डॉक्टर स्तब्ध थे
कोरोना को कयामत का द्वार सोचकर ।

ये ईर्ष्या-लिप्सा का प्रहार है
अब इंसान ही लाचार है ।

” प्रशांत सोलंकी ”
नई दिल्ली.

22 Likes · 54 Comments · 670 Views
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