कोरोना तुम कब जाओगे
मुश्किल में जान है हर शख्स परेशान है
मुंह पे लगे है ढक्कन सांस लेना कहां आसान है
इस घोर संकट से मुक्ति कब दिलाओगे
बस एक ही प्रश्न है कोरोना तुम कब जाओगे
रिश्ते नाते खंड खंड हैं काम धंधे सब बंद हैं
छीन ली आजादी हमसे ज़िन्दगी जैसे नजरबंद है
हमारे पैरों में पड़ी ये बेड़ियां कब हटाओगे
बस एक ही प्रश्न है कोरोना तुम कब जाओगे
ना इलाज कोई निश्चित है ना कोई दवा अभी सुनिश्चित है
इस ग्लोबल महामारी से सारी दुनिया चिंतित है
अस्त व्यस्त जनजीवन को फिर पटरी पर कब लाओगे
बस एक ही प्रश्न है कोरोना तुम कब जाओगे
निजी, सरकारी और धार्मिक सभी समारोह स्थगित हुए
दुनियादारी के सब कर्मकांड कोरोना से प्रभावित हुए है
सार्वजनिक स्थानों पर लगे ये ताले कब खुलवाओगे
बस एक ही प्रश्न है कोरोना तुम कब जाओगे
शिक्षा जैसे राह भटक गई कितनी परीक्षाएं लटक गई
थमे वाहनों और कारखानों के पहिए अर्थव्यवस्था अटक गई
उजड़ रहे इस चमन में फिर से बहार कब लौटाओगे
बस एक ही प्रश्न है “अर्श” कोरोना तुम कब जाओगे
Mohd Azeem ‘Arsh’
Pilibhit, UP