कोरोना चालीसा
कोरोना चालीसा
दोहा
श्री वीणा वादिनि सुमिर, बरनउँ हृदय विचार ।
कोरोना सी व्याधि का, नहीं कोई उपचार ।।
संकट में है मनुजता, जीर्ण – क्षीण पतवार ।
कुटिल विषाणु से करे, त्राहि – त्राहि संसार ।।
जनम वुहान चीन उपजाए, तुम मानवकृत अस्त्र कहाए ।
सीमा में थी ज्योति तुम्हारी, निमित स्वार्थ फेंकी बीमारी ।।
तुमने किया जो समझा भाया, शंघाई बीजिंग को बचाया ।
जैविक युद्ध का घोष कराया, योरोप-अमरीका को छकाया ।।
तुम निकृष्ट कोरोना दानव, तुमते त्रस्त जगत के मानव ।
तुम मानव – मानव से फैलो, घातक बहुत जान से खेलो ।।
जो तुमसे यदि टच हो जाई, बाढ़य रोग मरण फल पाई ।
सूक्ष्म रूप धर विश्व नचावा, विकट रूप धर मृत्यु दिखावा ।।
जिनपिंग कीनी बहुत बड़ाई, विश्व – विजय है तुमसे पाई ।
अब उपकार करो निशि वासर,जन की हानि न हो रत्ती भर ।।
श्वसन तंत्र पर राज तुम्हारा, हरते श्वास जाय नर मारा ।
तुम्हरी जग मा नहीं दवाई, रहे चिकित्सक अति अकुलाई ।।
लॉकडाउन में रहन हमारी, राजाज्ञा पालहि नर नारी ।
हम निर्देश के पालनहारी, अनुशासित नियमित आचारी।।
पुलिस प्रशासन और चिकित्सक, करमवीर भारत के रक्षक ।
सवा अरब हम हिंदुस्तानी, तुमको याद दिला दें नानी ।।
सुन ! कोरोना हाहाकारी, भारत से तुम करो फ़रारी ।
सुख – समृद्धि देश में आए, भारत का जन-जन हरषाए ।।
दोहा
राजाज्ञा पालन करें, करें माँद में ठौर
कोरोना से बचत का,‘धवल’ उपाय न और ।।
(सम्पादित अंश)
रचना-प्रदीप तिवारी‘धवल’