कोरोना की सीख
कोरोना की सीख नयी है,जनता जल्दी सीख रही है।
दौर गया था संस्कारों का,मानवता के व्यवहारों का।
स्वच्छ हवाएँ हैं शोर नहीं,
भीड़ भरा कोई छोर नहीं,
सब अपनों बीच रहें अब तो,
यात्रा करनी चहुँ ओर नहीं,
हाथ मिलाने का दौर गया,आया समय नमस्कारों का।
भारतीय संस्कृति जाग रही,दीद हुआ गुमे नज़ारों का।
जीवों की हत्या मंद हुई,
धरती कुछ आज स्वछंद हुई,
शांति अमन भी अब क़ायम है,
सोच नयी भी पाबंद हुई।
सागर भी अब मौन हुआ है,मौन ज़हाजी रफ़्तारों का।
सुनता लहरों की पावन ध्वनि,नृत्य कभी देखे लहरों का।
कोरोना ने सिखा दिया है,
अहंकार भी भुला दिया है,
मानव तेरी औक़ात यही,
कोरोना ने हिला दिया है,
कौन प्रकृति से जीता है रे!कर दर्शन प्रेम किनारों का।
वक़्त मिला है सीख ज़रा तू,करके रुख आज सुधारों का।
–आर.एस.प्रीतम