कोरोना का रोना! / MUSAFIR BAITHA
* चोरी-चकारी का डर भय समाप्तप्राय रहा। चाहो तो घर के दरवाज़े खोलकर सो लो!
** लुच्चे-लफंगे, गाली के गुंडे इस पीरियड में ’बेरोजगार’ रहे। स्कूलों-कॉलेजों, गर्ल्स हॉस्टलों के बंद होने से ये ऑनलाइन छिछोरी हरक़त कर ही काम चला रहे होंगे!
***गली-मोहल्लों के बाइकर्स गैंग की दनदनाती-हुर्रहुर्राटी हरक़तें लगाम थामने को विवश हुए।
*****गुटखा-तम्बाकू सेवन करने वालों को भी खुराक के अभाव में थरथरी पकड़ रही है।
******बिहार में शराबबंदी में भी जीवट और व्यवस्था वाले मस्त हो लेते थे। यह कन्सेशन भी लुट गया था। अस्तु, पिटे लोग इक्कीस दिन तक बिस्तर पर लेटने-लोटने और मातम मनाने, बिसूरने पर बाध्य रहे।
*******भक्ति के भोंपू जो मन्दिरों-मस्जिद से बजकर चैन से रहना-सोना हराम करते थे, उनसे भी उन दिनों पिंड छूटा।
*********पार्क, जू, थियेटर एवं निर्जन कोनों को मुहैया कराने वाले अन्य सारे सार्वजनिक स्पॉट भी बन्द रहे और लोग भी घरों में नजरबंद, सो, नैतिक-अनैतिक दैहिक प्रेम-व्यापार के ’प्रकट’ दरवाजे बंद रहने की वजह से इंटनरेट ही मात्र दिलासादेह सहारा रहा लोगों का।
छिपे रुस्तम रेड एरिया में फ्लर्ट करने के राहियों की भी दुर्दशा रही, क्लब, सैलून, स्पा तक बंद थे।
निचोड़! कोरोना-भय ने जो सख़्त सोशल डिस्टेंसिंग बरतवाई, उसने अनेक सोशल इविल्स (सामाजिक बुराइयों) को अस्थायी तौर पर ही सही, नेस्तनाबूद किए रखा!