कोरोना का चक्रव्यूह
शीर्षक :- कोरोना का चक्रव्यूह
विधा :- स्वतंत्र
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फँस गया वो देख आज ।।
समय की चाल में ,
कोरोना की गाल में ,
बीमारी की खाल में ,
त्रासदी बवाल में ,
शून्य के सवाल में ,
असहाय सा मनु लगा ,
विज्ञानियों की जाल में ,
सन्नाटे से उभरी आवाज ।
फँस गया वो देख आज ।।
नशा था चाँद का ,
ख्वाब आजाद का ,
सोचा न बाद का ,
जड़ क्या विवाद का ,
हस्र उन्माद का ,
चखा हर बार वहीं ,
पता न था स्वाद का ,
निगल रहा खुद का इजाद ।
फँस गया वो देख आज ।।
है वक्त अब सम्हाल ले ,
वक्त में ही ढ़ाल ले ,
रक्त का गुलाल ले ,
या चेतना का हाल ले ,
सच का नकाब डाल ले ,
वक्त है बुरा यहाँ अब ,
कोरोना से अभी निकाल ले ,
कहकहे में कैद ताज ।
फँस गया वो देख आज ।।
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रचना :- मिथलेश सिंह “मिलिंद”