कोरोना का कहर
ये उन दिनों की बात है जब ये जहाँ अपना था
जिस घर से हम बोर हुए उस घर में रहना एक सपना था
पंख पसारे खुली हवा में जब हम यू इतराने थे
मौज मस्ती, संगीत की धुन अपनों के संग दिल बहलाने थे
सोचा ना था कभी ये हमने एक दिन ऐसा भी आयेगा
मानव जीवन घुट घुट कर जिएगा प्रकृति खुल कर मुस्कुराएगा
किया है जो खिलवाड़ प्रकृति से उसका फल यूँ भुगतना था
ये उन दिनों की बात है जब
न कोई अब रंक यहाँ अब न कोई है राजा
अपने अपने कर्मों का सब भुगत रहे खामियाजा
बंद हुए सब कामकाज हर दफ्तर हर दरवाजा
विश्व स्तर पर कोरोना का काल चक्र मंडराया है
था नाज हमें जिस विज्ञान शक्ति पर एक विषाणु ने हराया है
हे सृष्टि रचयिता दया करो अब बस इतना कहना था
ये उन दिनों की बात है जब ये
निधि श्रीवास्तव
गोरखपुर