“कोरोना” एक वैश्विक आपात
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
दिल चाहता है आसमा को छू लू ,
लेकिन घरों में कैद होकर रह गयी है ।
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
आज हवाऐं भी पहरा लगाएं बैठी हैं,
अपनों को अपनों से दूर किये बैठी हैं।
सब की ज़िंदगी रुक सी गयी हैं,
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
हर तरफ सन्नाटा पसरा,
छाया अन्धकार है,
हर गली सुनी सी हो गई,
लाशों की भरमार हो गयी।
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
चाह मिलन की सबके भीतर,
कोई कही न रुकना चाहे,
जीवन के सन्नाटे को छोड़
अपनों के पास पहुँचना चाहे,
पर ये ज़िंदगी की गाड़ी अब थम सी गयी है।
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
अगर पहुँचना चाहो अपनों तक,
तो कदम न एक बढ़ाना यारों
कैद कर लो कमरे में खुद को,
क्योंकि वैश्विक आपात लागू हो गयी है।
ऐ ज़िंदगी तू कुछ इस कदर सिमट गई है।
अमित राज
व्याख्याता हिंदी