‘ कोयला बनाम हीरा ‘
तुम इतना जल कर क्या करोगे
अपने रंग को और ज्यादा गहरा करोगे ,
क्या कहा ? रंग तुम्हारा साफ है
लेकिन हरकतें तो बड़ी मज़ाक हैं ,
हर बात पर इतना क्यों जल जाते हो
माशा अल्लाह फिर भी गोरे ही कहलाते हो ,
अगर तुम्हारी जलन चमड़ी पर आ जायेगी
फेयर एण्ड लवली भी कुछ ना कर पायेगी ,
तो मियां अपनी जलन थोड़ी कम कर दो
कभी अपना हाथ किसी पीठ पर भी रख दो ,
क्या रखा है बेवजह यूँ जलने जलाने में
काम लेना इसका बर्फ को पिघलाने में ,
अंदर की आग मुई बड़ी घातक होती है
धीरे – धीरे दीमक की तरह चाट जाती है ,
ये घातक आग दो तरह से काम करती हैं
एक अंदर से तो दूसरी बाहर से जलाती है ,
पहली मुफ्त तो दूसरी बेशकीमती होती है
पहली तो बेकार में दूसरी दाम देकर मिलती है ,
पहली मुफ्त में होने के बावजूद सब नही लेते
दूसरी को लेने के लिए घुटने तक हैं टेकते ,
और तुम हो की बात – बात में जले जाते हो
अंदर से कोयला उपर से हीरा कहलाते हो ,
अरे ! असली हीरा तो अंदर से बनते हैं
बाहरी हीरे को तो पत्थर कहते हैं ,
मन से जल कोयला बन राख हो जाओगे
अंदर से बने तो दिल से हीरा कहलाओगे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 14/12/2020 )