कोई हिसाब समझ न् आया
कोई हिसाब समझ न आया
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कोई गुलाब नजर न आया,
कोई हिसाब समझ न आया|
हां ढ़ूंढने निकला मै खुद को,
टूटे दिल को सबर न आया|
जिस राह चला दो कदम भी,
वापिस लौट परत न आया|
रास्ते मिलें हमें कुई सफर मे,
पर यार राह पकड़ न पाया|
खोई हुई किताब मनसीरत,
एक भी लफ्ज़ पढ न माया|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)