“कोई बनता है वास्ता तो देखेंगें”
क़दम जवां हैं ,उठे शैलाब में कोई बनता है रास्ता तो देखेंगें
बेमतलब बा अदब बेहिसाब कोई बनता है वास्ता तो देखेंगें
सब दिल जुदा हैं, भरे ज़माने में अपना कोई नज़र नहीं आता
फ़िर भी आस बाक़ी है,बन जाए किसी से कोई राब्ता तो देखेंगें
यूँ तो गर्दिश में अक्सर अपने भी किनारा कर लिया करते हैं
ज़िन्दगी की राह में अग़र मिल जाए कोई फ़रिश्ता तो देखेंगें
इक़ जाँ है फ़कत हमपे खोने को, औऱ तन्हायों का सफ़र है
इस ग़ुरबत के वीराने में ख़िल जाए कोई गुलिस्तां तो देखेंगें
इक़ इक़ दिन इक़ इक़ पल के जैसे कटता चला जा रहा है
बड़ी तेज़ चल रही घड़ी भी वक़्त हो जाए ग़र आहिस्ता तो देखेंगें
क़दम दर क़दम कोशिश है , कोई दिल ना दुःखे किसी ख़ता से
मिल जाए हमें आफ़रीन ये ज़िन्दगी गुज़र जाए बे ख़ता तो देखेंगें
हर जगहा रौशनी सी जगमगा रही है, जुगनुओं की तरहा
हमारे आसपास अँधेरा घना है, मिल जाए कोई चाँद चमकता तो देखेंगें
___अजय “अग्यार