कोई मुझे भाता नही
***** कोई मुझे भाता नहीं ******
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रदीफ़:-नहीं
*क़ाफ़िया:- आता,जाता,भाता,नाता
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भय में यहाँ कोई कभी आता नहीं,
कोई यहाँ से भी कहीं जाता नहीं।
देखा जमाना घूम कर सारा यहाँ,
कोई जहां में भी मुझे भाता नहीं।
मुश्किलें बहुत आई यार तुम्हारे बिना,
मोहब्बतों का गीत भी गाता नहीं।
यूँ छोड़ कर तुम अकेला जब से गए,
तेरा रहा मुझ से यहाँ नाता नहीं।
गम से भरा जीवन मिला जो था हमें,
सन्देश हर्षों से जो भरे हैं लाता नहीं।
तब हाल मनसीरत बुरा ही था हुआ,
दिखता कहीं कोई मुझे रास्ता नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)