कोई भोली समझता है
कोई भोली समझता है कोई कोमल समझता है
कोई औरत को बस ममता की एक मूर्त समझता है
जन्म जिसने दिया मुझको तुम्हें और इस सृष्टि को
उसी देवी को आखिर क्यों कोई अबला समझता है
कोई भोली समझता है……….
भला क्यों यह समझते हैं बड़ी कमजोर है औरत
भला क्यों ऐसे तकते हैं कि यूॅ॑ कुछ और है औरत
उसी की कौंख में जन्मे उसी पर हैं बुरी नजरें
चाहिए सम्मान जिसको क्यूॅ॑ कोई अबला समझता है
कोई भोली समझता है………..
कोई बेटी कोई बहाना कोई पत्नी कोई माॅ॑ है
बिना नारी के हे मानव भला हस्ती तेरी क्या है
तेरा आरंभ है औरत तेरा अस्तित्व है औरत
तेरा है क्या बिना उसके जिसे अबला समझता है
कोई भोली समझता है………….
कोई सीता या अनसूईया या लक्ष्मी है किसी घर की
कोई गीता कल्पना साक्षी सायना किसी घर की
नहीं काम है कोई भी देख लो सारे जमाने में
उदाहरण है अनेकों फिर भी क्यों अबला समझता है
कोई भोली समझता है…………..
कहे “V9द” आया वक्त हम सौगंध लेते हैं
किसी माता बहन बेटी को हम सम्मान देते हैं
सुरक्षित हैं अगर औरत हमारा कल सुरक्षित है
है नारी शक्ति क्यों उसको कोई अबला समझता है
कोई भोली समझता है…………..