कोई पास आया सवेरे-सवेरे
ग़ज़ल
दिया एक जलाया सवेरे-सवेरे
कोई पास आया सवेरे-सवेरे
सजा सेज कलियाँ लगीं गुदगुदाने
हिया से लगाया सवेरे-सवेरे
बतायें क्या तुमको कयामत क्या आयी
लबों पर सजाया सवेरे-सवेरे
छुआ जब किसी ने मेरे गुलबदन को
क्या मन्ज़र दिखाया सवेरे-सवेरे
नजर से नजर जब मिलाई थी उसने
नशा सा पिलाया सवेरे-सवेरे
चुराकर जिया जब वो जाने लगा था
घटा बनके छाया सवेरे-सवेरे
मैं मदहोश होकर लगी झूमने जब
आ खुद में समाया सवेरे-सवेरे
न जाने क्यूँ माही चढ़ी ये ख़ुमारी
कदम डगमगाया सवेरे-सवेरे
©® डॉ प्रतिभा माही