कोई ना रहे अकेला
चलों एक मुहिम चलाएं
ज्ञान का एक ऐसा दीप जलाएं
अंधेरे कमरे भी हो जाएं रौशन
जीत का ऐसा जश्न मनाएं।।
कोई ना रहे अकेला
किसी का दामन ना हो मैला
चारों तरफ़ हो प्रकाश-ही-प्रकाश
ऐसा करेंगे हम निर्माण अवकाश
पर्वत-पहाड़ो से, रिश्ता अनजानों से
फूलों से, कांटों से, चाहें अलबेलों से
प्यार से जीतेंगे हम दुनिया-जमानों को
ऐसा राह दिखाएंगे हम दिलवर-दिवानों को।।
उजड़े चमन को हम फिर से सजाएंगे
चुन-चुन के कांटों को फूल हम बिछाएंगे
रिश्ते के खन-बन को,हर एक उलझन को
मिटा के ऐसा जीत का जश्न मनाएंगे।।
जब भी आएं मुश्किल हम पे
मार्गदर्शन लेंगे हम सब के
ज्ञान ,उम्र से नहीं होता बड़ा
फिर क्यों हम समझे खुद को बड़ा।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार