कोई ना अपना रहनुमां है।
दर्द दिल के किसको बताएं कोई ना अपना रहनुमां है।
सिलेगा ना कोई भी ज़ख्मों को हंसने को बैठा जहां है।।1।।
वो खुदको कहते है आलिम शहर का इल्म कुछ ना है।
हिफ्ज तो है यूं आयतें कुरान की पर पता ना तर्जुमा है।।2।।
इंसानों के लिए सरहदें है पर परिंन्दों का पूरा जहां है।
उड़ने के खातिर उनके खाली पड़ा सारा ये आसमां है।।3।।
लाहौल वला कुव्वत इंसानों पर जो बेदीन हो चूके है।
नाजिल होने को अबना आयतें हैं मुकम्मल ये कुरां है।।4।।
तन्हा भटक रहे है मकसूद ए मंजिल ना मिल रही है।
सब संग में सफर पे चले थे पर उनसे छूटा कारवां है।।5।।
इज़्जत आबरूओं का होने लगा है कारोबार यहां पे।
कितना बे रहम हुआ देखो तो ज़रा आज का इंसा है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ