*कोई नई ना बात है*
कोई नई ना बात है
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।
सोचता है क्यों अमर हूं, यह हैरत की बात है।
पिता के साथ नाचती हैं, अर्द्ध वेश में बेटियां।
लगती हैं वे सब ऐसे, कान्हा की गोपियां।
आंखें बंद हैं पता नहीं, कि दिन या रात है।
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।
आज रिश्ते नाते छोड़ सब, देते हैं गालियां।
देख कर सब लोग इसे, बजाते हैं तालियां।
बहन को छोड़ दिया, हो गई अब सालियां।
पता नहीं क्यों भूल गए, कि शाम प्रभात है।
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।
पीकर शराब गलियों में, जुआ खेलते मनाते होली।
डिंग मारते ऐसे, जैसे भरी हो उनकी झोली।
पीटता है भाई भाई को, हंस रहे हैं लोग लुगाई।
भ्रष्टाचार बलात्कार लूट खसोट, ये आम बात है।
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।
चोर उल्टा कोतवाल डांटे, अनुशासन नहीं भ्रष्टाचार।
टेढो की आ जाती बारी, सीधों की लगती कतार।
कर्जा कर लेते इतना, मांगने से ना मिले उधार।
फल देगा धर्म बाद में, पहले हवालात है।
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।
इंसान होकर करें भेदभाव, पता नहीं क्या है फर्ज।
वैचारिक प्रदूषण बड़ा भयंकर, न कोई शिकायत दर्ज।
मानवता से प्यार करो सब, यही है मानवता का फर्ज।
दुष्यन्त कुमार बुराई के नहीं, अच्छाई के साथ है।
मरना है एक दिन सबको, कोई नई ना बात है।।