कोई तो आज पूछो आकर ये मालियों से
कोई तो आज पूछो आकर ये मालियों से
कैसे बचायें उपवन अपना वो आँधियों से
मजबूत इसलिए ये रेशम की डोरियाँ हैं
इनका अटूट बंधन रहता है राखियों से
डर कर न मुश्किलों से यूँ हार मानना तुम
लेना सबक जरा तो इन नन्हीं चीटियों से
चढ़ सा नशा गया यूँ इन काफियों का हम पर
लेकर रदीफ़ दिल में फिरते हैं प्रेमियों से
ये सूर्य चाँद तारे भी खेलते गगन में
छिपने कभी निकलने का खेल बादलों से
मासूम बच्चियों को क्यों मारते हो बोलो
जीवन है ‘अर्चना’ जब हर घर में बेटियों से
डॉ अर्चना गुप्ता