कोई जीत का भी इशारा न था
कोई जीत का भी इशारा न था
मगर हौसला यूँ भी हारा न था
चला वो सफ़र पर कठिन रास्ते
मगर हादसों ने पुकारा न था
नज़र जिस किनारे पे हमने रखी
मुक़द्दर में वो ही किनारा न था
किया जिस सितारे पे हमने यकीं
वही साथ अपने सितारा न था
डगर ज़िन्दगी की अकेले चले
सभी पल के साथी सहारा न था
रहा टूटकर आइना देखकर
अभी ख़ुद को उसने संवारा न था
कई साल पहले का वो ख़्वाब है
वही ख़्वाब आया दुबारा न था
पड़ी मार फ़िर भी खड़ा है अदू
जो मारा तमाचा करारा न था
जहाँ आज ‘आनन्द’ नाराज़ है
किया जो सभी को गवारा न था
शब्दार्थ:- अदू = दुश्मन / शत्रु
– डॉ आनन्द किशोर