“कोई गुजर गया शायद”
चंद लोग ही दिखे जनाजे में,
फिर कोई बेनाम मौत मर गया शायद,
दूर तक काफिला ही काफिला नजर आया,
बड़ा नेता कोई गुजर गया शायद,
बेनाम ही आते हैं सभी जहां में,
किसको क्या मिले यह मुकद्दर है शायद,
जिस निवाले की खातिर उसने दम तोड़ दिया,
वह अमीर अपने कूड़े में पटक गया शायद,
सुना है आज फिर किसी ने जान ली,
पैसों की खनक में,
जुर्म कहीं छुप गया शायद,
नोच रहे थे गिद्ध मासूम को लाश समझ,
उसी की चाह में,
बेऔलाद कोई मर गया शायद,
चमगादड़ों के पनाहगार होंगे खाली आशियाने बहुत,
सुना है फुटपाथ पर फिर कोई मर गया शायद,
अमीर की अमीरी की हवस कुछ ऐसी बढ़ी,
सुना है लालटेन से,
रात किसी गरीब का,
आशियाना जल गया शायद,
जिस शराब के बलबूते,
सरकार अपनी तिजोरियां भर्ती रही,
अस्मत आज फिर तार-तार हुई,
इंसान हैवान बन गया शायद,
भगवान के नाम पर,
मंदिरों में चढ़ावे चढ़ाते रहें,
सुना है उसी की चौखट पर,
भूख से कोई मर गया शायद,
जिस्मानी चिथड़े उड़ चुके थे,
लाइन पर चहुंओर,
फिर कोई “शकुन”,
जिंदगी से सहम गया शायद।