कोई कैसे कवि बन पाता है
तब कोई कवि बन पाता है ।
आंखो का आशू लुढ़क लुढ़क
जब हृदय तक बढ़ आता है
अमूर्त बात जब लिपि पाकर
कागज पर आ जाता है
तब कोई कवि बन पाता है ।
श्रम की मसि दर्द अश्रु पाकर
जब अक्षर रूप में आता है
मन बेचैनी से घबराकर
दर्द अधिक बढ़ जाता है
तब कोई कवि बन पाता है ।
ठोकर खाकर भी चढ़ते रहना
जो बातों बातों में समझाता
जब सुख को छोड़ त्याग करके
मेहनत की रोटी खाता है ।
सही गलत का भेद समझ
जो सही राह अपनाता है ।
तब कोई कवि बन पाता है ।
चिंतन जब चरम पहुँच जाए
विम्ब मन में आ जाता है
वह मूक भाव को पढ करके
लिपि में अंकित कर जाता है
जब कलम शक्ति के साथ सदा
परिवर्तन बिगुल बजाता है ।
तब कोई कवि बन पाता है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र विचार