कोई किस्मत से कह दो।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
कोई क़िस्मत से कह दो हमको भी साथ ले ले।
कुछ कर दो दुआ शायद यहीं हमको सुकूँ दे दे।।1।।
तन्हाई का आलम है कोई ना है साथ में हमारे।
बेजार है खुदसे कोई हमको राहत के पल दे दे।।2।।
पास है समंदरे आब फिर भी प्यासे है हम बड़े।
कबसे है इंतजार कोई आके ये तिश्नगी बुझादे।।3।।
राहों में तन्हा खड़े है कोईभी हमसफर नही है।
बहुत लम्बा है रास्ता कोई चलने को साथ दे दे।।4।।
कबसे पड़े है ये पत्थर रास्तों पे बेनाम से सारे।
रख कर मंदिर में कोई इनको भी खुदा बना दे।।5।।
ऐसा ना है कि खुशियां जहां में खत्म हो गई है।
काश कोई फरिश्ता आके नफरतों को मिटा दे।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ