कॉलेज के दिन !
वो कॉलेज के दिन थे,
सपनों वाली रातें थी।
कुछ कही, कुछ अनकही,
जाने कितनी बातें थी।
मोहब्बत वाला मन था,
मस्ती से भरा हुआ तन था।
गाती गुनगुनाती तरंग थी,
कहीं उत्साह था कहीं उमंग थी।
दोस्ती का पावन नाता था,
हर कोई हंसता गाता था।
एक दूसरे के लिए जीते थे,
साथ खाते औ साथ पीते थे।
कैंटीन में समय बिताते थे,
कथा कहानी भी सुनाते थे।
ताश की पत्ते हमें जगाते थे,
क्लास में बहाने भी बनाते थे।
पढ़ाई परीक्षा वाली रात होती,
उन दिनों भी क्या बात होती।
रात रात भर हम जगते थे,
अक्षर अक्षर सब रटते थे।
सौंदर्य के भी हम कायल थे,
इश्क में भी हुए घायल थे।
दोस्तों के ताने भी सहते थे,
लेकिन कुछ ना कहते थे।
मोहब्बत वाला फसाना था,
क्या खूब वो अफसाना था।
रात जागते, दिन में सोते थे,
बेवजह हंसते और रोते थे।
इशारों में सब बात होती थी,
ख्वाबों से भरी रात होती थी।
क्या क्या सपने हम सजाते थे,
कुछ बताते तो कुछ छुपाते थे।
कॉलेज के वो दिन सुहाने,
खुशियों वाले सारे बहाने।
वो मासूम यादों की कहानी
वो लड़कपन वो मनमानी।
वो दिन अब कहां फिर आयेंगे,
यारों से भी कहां मिल पाएंगे।
यादों में उनकी रहना होगा,
साथ समय के बहना होगा।