कैसे वोट बैंक बढ़ाऊँ? (हास्य कविता)
कैसे वोट बैंक बढ़ाऊँ?
(हास्य कविता)
मुझे तो बस यही चिंता सत्ता रही
की बजी अब चुनाबी घंटी
मैं कैसे अपना वोट बैंक बढ़ाऊँ
सत्ता की गलियारों में फिर कैसे ऊधम मचाऊँ?
चुनावी घोषणापत्र में
कितने अच्छे-अच्छे ऑफर
कोई ऑफर छूटे तो नहीं
भोली-भाली जनता को कैसे समझाऊं?
फ्रीवाला ऑफर तो बहुत हो लिया
क्या करूँ? जो इनको ललचाऊँ
वोट सिर्फ मुझे ही देना भाई
हर किसी को यही बात समझाया.
हम तो पहुँचे ही थे अभी
चुनावी ऑफर लेकर जनता के पास
इतने में ओ विपक्षी भी आ धमके
हमें झूठा बतलाकर, अपनी हवा-हवाई में लगे.
मैं उसे, वो मुझे झूठा कह रहा
चुनावी भाषणो से जनता को लुभा रहा
इन लुभावने घोषणाओं से कैसे भरमाऊँ?
मैं कैसे अपना वोट बैंक कैसे बढ़ाऊँ?
जनता का कुछ भला नहीं
सिर्फ़ दिखावे के रंग-बिरंगे घोषणाएं
कुर्सी पे क़ाबिज़ हो सकूँ कैसे?
नेता हूँ, समझो हमारी भी जनभावनाएं.
हर एक का विकास करूँगा
सिर्फ़ कहता, पर करता कभी नहीं
सत्ता मिले तो, कैसे अपनी सम्पति बढाऊँ?
मैं कैसे अपना वोट बैंक बढ़ाऊं?
कवि- किशन कारीगर
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