कैसे भूलूँ
दिल मेरा भूल नहीं सकता
जो वक़्त ने मुझपे ढाया है
आँखों के पानी सूख गए
आँसु को इतना बहाया है
चार दिनों के जीवन में
बस दुख ही दुख का मेला है
इस उम्र में कितने दुख मैंने
सीने पे अब तक झेला है
कितने शूल चुभे दिल में
दिल मेरा बड़ा सताया है
दिल मेरा भूल…
पल पल टूटे सब ख्वाब मेरे
टूटी मन की सब आशाएँ
जब चला वक़्त का ख़ंजर तो
अपने भी फिर न काम आए
मन हार गया दिल टूट गया
वक़्त ने मुझे हराया है
दिल मेरा भूल…
ग़म की उमड़ती आँधी में
निकले थे ढूंढने हम खुशियाँ
बिखर गया सब चूर हो गया
दिल में बसी थी जो दुनिया
जब ग़म की धूल छँटी थोड़ी
देखा सब कुछ बिखराया है
दिल मेरा भूल…
खुद को संभाल कर खड़ा हुआ
जो बिखर गया सो छोड़ दिया
निकल पड़ा अंजान डगर पे
कदमों ने जिधर मुझे मोड़ दिया
पता नहीं मैं कहाँ चला
दिल मेरा बड़ा घबराया है
दिल मेरा भूल…