कैसा है इम्तिहान या मौला
ग़ज़ल
कैसा है इम्तिहान या मौला।
मुश्किलों में है जान या मौला।।
नाक मुह पर लगे हुए पहरे।
क़ैद में हैं ये कान या मौला।।
दे दिया क्यों हमें लवील सफ़र।
आ गई है थकान या मौला।।
सर झुका लेता हूं वहीं पर अब।
सुनता हूं जब अज़ान या मौला।।
हर सू चीख़ो-पुकार के मंज़र।
छेड़ दे मीठी तान या मौला।।
अब अता कर दवा, शिफ़ा हमको।
कुछ तो कर दे निदान या मौला।।
है दुआगो “अनीस” कर ले क़ुबूल।
ख़ुश रहे ये जहान या मौला।।
– अनीस शाह “अनीस”