कैसा रोग फैला हे!भगवान
***** कैसा रोग फैला हे!भगवान ****
*******************************
न जाने कैसा रोग है फैला हे! भगवान,
गली,बाजार , सड़के दिखती हैं सुनसान।
कोई भी जन अब तक समझ नहीं पाया,
कोरोना बीमारी से हो रहा भारी नुकसान।
विश्व पटल पर युद्ध स्तर सा है फैल रहा,
बुद्धिजीवी जग के सारे अब तक अंजान।
रंक और राजा तक भी नहीं है झेल पाए,
बच्चों से वृद्ध तक सभी हो रहे परेशान।
त्राहि त्राहि सी वसुन्धरा पर खूब मचाई,
समझ नही पाया कौन है रोग का दीवान।
करोडों भू पर जन गण की जानें निगली,
कब तक होगा इस महामारी का निदान।
भय का साया तन मन पर रहे मंडराता,
ना जाने कब किसे दिख जाए शमशान।
शमशानों में भी लग गई है लम्बी क़तारें,
कब हो पाएगा रोग का स्थायी समाधान।
ऑक्सिजन तक की हुई है कालाबाजारी,
पीपल की ठण्डी छाँव याद करता इंसान।
हैवानियत को जड़ से सब भूल है जाओ,
इंसानियत का सभी जन करिए आह्वान।
मनसीरत कौन किसको ढांढस बंधवाए,
धैर्य छोड़ रहे प्रतिनिधि और राष्ट्र सुल्तान।
*******************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)