कैसा फसाना है
*** कैसा फसाना है ***
ज़िन्दगी कैसा नगमा है
ना किसी ने यह जाना है
है कौन यहाँ किसका
यह कोई ना जाना है।
कुछ भी नही है अपना
सबकुछ तो वेगाना है
कुछ पल की है ज़िन्दगी
कुछ साध ना जाना है ।।
है दर्द यहां सभी को
ना है सकूं किसी को
कोई धन से पारा है
कोई धन से हारा है
है जग ये परेशान यहां
ये कैसा फ़साना है।।
***दिनेश कुमार गंगवार ***