कैसा कोलाहल यह जारी है….?
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
राम आएंगे कब कहाँ से कैसे, उनके आने की तैयारी है।।
अरे राम गए थे कहाँ जहां से, वापसी की लाचारी है।।
घट-घट वासी राम रमैया, मन मन्दिर में आसन धारी है।
बिलुप्त नहीं वो जिनका वापस, आना अबकी बारी है।।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
वो तो वापस तभी आ गए, मानस कृति ये कहता है।
राम राज करने हेतु ही, मेरा राम अयोध्या रहता है।।
यह मंदिर नया नहीं अपितु, बस हमने उसे संवारी है।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
एक आक्रांता दम्भ में भर कर, उनके मंदिर को तोड़ा।
समय काल में रहा लिखा, प्रभु ने न था मर्यादा छोड़ा।।
अबकी बार भी नया नही बस, जीर्णोद्धार सकारी है।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
प्राण प्रतिष्ठा हुआ था कब, और कब थे घर-घर दीप जले।
ज्ञात सभी को होगा यह फिर, कैसे ये नए विहिप पले।।
जिनके कंधे था उनको आना, उन्हीं कंधो पे सवारी है।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
माना कि एक घर टूटा था, थे टाट मड़ैया में वास किये।
तब के बिभीषण संग थे पर, अब वाले नहीं विश्वास कियें।।
वह भी प्रिय और यह भी प्रिय, प्रिय इनके तो जग सारी है।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
है विजय प्रतीक बना देखो, जो खोया था वह पाया है।
श्रेष्ठ सनातन धर्म की छवि, हम सबने मिलके बचाया है।।
अब भी हो मतभेद तो समझो, राम की सीख बिसारी है।।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
सबरी माता, केवट सा मित्र, और पाया प्रेम जो भाई का।
एक वनवासी वन-वन भटका, पर न भटकाया मन राई सा।।
जानो तो स्वयं के राम को जानों, जो जन-जन को प्यारी है।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
भेदभाव जो किये नहीं, वह अब अलगाव नहीं चाहेगा।
मन को निर्मल करो तभी तो, राम के मन को भी भाऐगा।।
राम के धुन में रहें झूमते, चढ़े नाम की ऐसी खुमारी है।।
कोलाहल-कोलाहल कैसा? कोलाहल यह जारी है….।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २१/०१/२०२४)