कैक्टस
साथ ही तो उगे थे
दोनों पौधे
एक को बूंद मिली
एक को सूर्य की कर्करी
एक नमी से खिल उठा
एक दर्द से झुलस गया
एक गर्व से महक गया
एक वृद्धि को तरस गया
मगर उसने सहानुभूति नहीं मांगी
और संघर्ष की ठानी
उसने
अपनी आवश्यकता को क्षीण किया
अपनी ही पत्तियों को जीर्ण किया
सहकर भी तीक्ष्ण व्यवहार
अपनी जीजिविषा को विस्तीर्ण किया
अपनी ही अनुकूलन क्षमता से
जब उसने जीवन पाया
सबने उसे
कैक्टस बताया