कृष्ण
वेदान्तक वाणी, कृष्ण के वाचनमे,
अर्जुनक जीनगीक सार सिखेहे ।
अद्वैतक दर्शन, कर्मक पाठ
प्रेम, ज्ञान आ भक्तिक प्रसाद !!
वेदान्तक प्रतिध्वनिमे माधव राग,
ब्रह्माक प्रकाशमे आत्मा प्रकाश।
निस्वार्थ कर्मक ज्ञान देलनि,
जीबनक हर पग,दान देलनि।
कृष्णक उपदेशमे वेदांतक मार्ग,
भ्रम सँ परे, सत्यक प्रकाश।
आत्मामे ब्रह्म के सामना बुझू,
एहि जीवनकेँ ओहिना बुझू
जेहिना एकर सार बुझेलनि।
विद्यापतिक बांसुरी,राधा पुकार
कृष्णक प्रेममे बहै प्रेमक बहार
ओ मधुर राग मैथिली गुंजायमान
कृष्णक प्रेम प्रीत शब्दमे नुकायल
राधाक आह्वान विद्यापतिक बांसुरीसँ आएल,
कृष्णक प्रेम मे प्रेमक प्रवाह बहैत छल ।
ओ सुरीला राग मैथिली मे गुंजायमान भेल,
कृष्णक प्रेम एक-एक शब्द मे नुकायल छल !
चैतन्य भक्तिक भेटल प्रेमक संगीत,
हरि कीर्तन बंसी धड़िकन कए गीत
विद्यापतिक वाणीमे जे रस छल जीवित,
महाप्रभु तकरा भक्तिमे केला जीवित !!
प्रेमक ई लहरि सभ हृदयकेँ छूबि देल,
विचार कृष्णक चरणमे समर्पण भ गेल।
विद्यापतिक काव्य आ चैतन्यक भक्ति
पानिमे विलीन नहर जकाँ एक भ’ गेल
**हर शब्द,हर राग, प्रेमक गीत गबैत,
श्रीकृष्णक भक्तिमे समस्त संसार डूबल।
विधापति आ चैतन्यक ई शिष्ट मिलन.
भक्तिक धारामे मन बहकि जाइत ।
—-श्रीहर्ष