कृष्ण हमारे प्राण अधारे ।
कृष्ण हमारे प्राण अधारे ।
प्रेम को पाठ पढ़ाये महाप्रभु,
सिगरी धरा तुम ओर निहारे
माखन खाये चुराये नटे नित
लीला ललित ललाम सचारे
गोपी कहें चितचोर हैं कान्हां जू
ग्वाल कहें सखा कृष्ण मुरारे
पाती पढ़ अकुलाये कहे दोऊ
कृष्ण हमारे प्राण अधारे ।
चीर हरण करे डारे दुशासन
सब दिग्गज सिर नीचे को डारे
बन असहाय लजाय रही
हुय कातर चारहु ओर निहारे
विधि की विधना जब ऐसी लखी
पति पांचहु हैं बने बैठे विचारे
तब पान्चालि पुकार उठी प्रभु
कृष्ण हमारे प्राण अधारे ।
माया रची लीलाधर कृष्ण ने
चीर बढ़े न घटे कर काढ़े
खींचत खीझि रिसाय रहे
दुशासन खींचत खींचत हारे
लाज रखी प्रभु दीनन की
तुमको सब दीनदयाल पुकारे
ऐसे ही लाज रखौ सबकी प्रभु
कृष्ण हमारे प्राण अधारे।
अनुराग दीक्षित