“कृष्णा” (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)
कृष्णा
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‘मथुरा’ के , जेल में जन्मे;
देवकी के, 8 वें संतान ये;
‘वासुदेव’ पिता थे, इनके;
बाद में बन गए, श्याम ये।
यशोदा-नंद ने, इन्हें पाला,
गोकुल बना था रखवाला,
कहलाए तब तो ये ग्वाला,
हुए राजा ‘द्वारकाधाम’ ये।
राधा बन गई इनकी जान,
रुक्मिणी, इनकी पहचान;
बाकी गोपियों के,ये प्यारे;
सब इनको कान्हा पुकारे।
कोई बोले इनको कन्हैया;
कोई कहता , मुरलीवाला;
सुदर्शन-चक्र, यही चलाए;
बड़ा नटखट ये नंदलाला।
हर संकट, इससे शरमाए;
सबके कष्ट ये, दूर भगाए;
भक्तों के यह, काम आए;
ये लड़का है, बांसूरीवाला।
श्यामल सा है वर्ण इनका,
सदा न्यायिक कर्म इनका,
अर्जुन का ये , बने सारथी;
गीता का ये मर्म समझाए।
यशोदा माता के, ये दुलारे;
दोस्तों के ये , सबसे प्यारे;
मुख में इनके हैं, सृष्टि सारे;
सारे दानव इनसे सदा हारे।
देवकी पुत्र ये हैं , कहलाते;
सदा ये, माखन चुरा खाते;
यशोदा माता को, बहलाते;
कालियानाग को ये भगाते।
पूरा जग करे, इनका वंदन;
ये कहलाते , वासुदेव नंदन;
मिटा दे , जो सबकी तृष्णा;
नाम है उसका ही, “कृष्णा”।
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……✍️पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।