कृत्रिम साैन्दर्य
मन में है शोर चित पावन चित चोर
संवेदित हो रहा है मेरा भी पोर पोर
जा रही है कैसे इठलाती बलखाती
कहाॅं से आई कौन है ये सुंदर नारी
मचल कर ये कैसे आगे से जा रही
दिल में विद्युत का प्रवाह कर रही
क्या उसे जी भर कर देखने को
उनके रुप सौन्दर्य का परखने को
भाग कर क्या मैं आगे चला जाऊॅं
तब ही मैं उसे अपना सन्मुख पाऊॅं
आखिर है कौन ये कोमल सुकुमारी
दिल छलनी कर चला रही है आरी
सौन्दर्य को नजदीक से महसूसने
नजर से ही उसके रस को चूसने
दिल का मेरा जो मेरा तार बजा है
उसमें तो बस एक अलग ही मजा है
हवा के संग कैसी ये बल खा रही है
हवा भी मन्द मन्द मुस्कुरा रही है
पीछे से जब करती ऐसा कारनामा
ताे आगे से यह क्या गुल खिलाएगी
मेरे जैसे कमजाेर दिलवालाें काे तो
तब उपर का रास्ता ही दिखलाएगी
अब ताे बिल्कुल ही रहा नहीं जाता
क्याें न जाेड़ लूँ मैं इनसे काेई नाता
पर मन ने अचानक ही टोक दिया है
बढ़ते कदम को भी रोक लिया है
आगे से उसे पूरी तरह देखने का
भय कल्पना के क्षत विक्षत होने का
कोई क्यों मुफ्त में खतरा को ले मोल
कहीं कृत्रिम सौन्दर्य राज को न दे खोल